अन्यायेन तु युध्यन् वै हन्यादेव सुयोधनम्,क्या जिहाद पर नियंत्रण सम्भव – दिव्य अग्रवाल

विचार:जिहादी सिर्फ शरीयत को मानता है संविधान को नहीं, AK – 47 रखना ,रिसिन जैसा खतरनाक जहर बनाना,अवैध शस्त्रों को एकत्रित करना, गजवा ऐ हिन्द और खिलाफत स्थापित करने हेतु IED का प्रबंध करना, हजारो किलो ग्राम बम सामाग्री जुटाना क्या यह सब कार्य संविधान के हैं, नहीं यह सब कार्य उस मजहबी कानून के हैं जिसमें गैर मुस्लिमो को जीने का अधिकार नहीं है। ऐसे राक्षसों को कठोर नियमो से नहीं अपितु कठोरतम दण्डनात्मक कार्यवाही से ही सुधारा जा सकता है। जिस अंग में गैंग्रीन जैसी बिमारी हो जाय उस अंग को तुरंत काट दिया जाता है अतः जिन संस्थाओं और संस्थानों की मजहबी शिक्षा से मानव को दानव बनाया जाता है उन स्थानों को जमीदोज और उस मजहबी शिक्षा को प्रतिबंध कर देना चाहिए।
कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम्।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्॥
अर्थात्- जो जैसा करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करो। जो तुम्हारी हिंसा करता है, तुम भी उसके प्रतिकार में उसकी हिंसा करो! इसमें मैं कोई दोष नहीं मानता, क्योंकि शठ के साथ शठता ही करने में उपाय पक्ष का लाभ है।
ये हि धर्मस्य लोप्तारो वध्यास्ते मम पाण्डव।
धर्म संस्थापनार्थ हि प्रतिज्ञैषा ममाव्यया॥
हे पाण्डव! मेरी प्रतिज्ञा निश्चित है, कि धर्म की स्थापना के लिए मैं उन्हें मारता हूँ, जो धर्म का लोप (नाश) करने वाले हैं।
वेदादि शास्त्रों के प्रमाणों से यह तो निश्चय हो गया कि आत्मरक्षा अथवा देशहित के लिए दुष्टों, आततायियों तथा राक्षसों का मारना पुण्य है।
भीमसेनस्तु धर्मेण युध्यमानो न जेष्यति।
अन्यायेन तु युध्यन् वै हन्यादेव सुयोधनम्॥
भीमसेन धर्म से युद्ध करता हुआ दुर्योधन को नहीं जीत सकता। यदि तू छल से युद्ध करेगा तो सुयोधन (दुर्योधन) को जीतेगा अतः छली दुर्योधन को तुम्हें छल से ही मारना चाहिये।
उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि सत्य और अहिंसा को मानने वाले ऋषि-महर्षि भी देश व समाज की रक्षा के लिए, जैसे को तैसा उत्तर देने और हिंसा करने की आज्ञा देते रहे हैं। राष्ट्र और समाज को बचाना है तो जिहादियों की सोच और उनकी शिक्षा को उसी भाषा से प्रतिकार करना होगा जो भाषा उन्हें समझ आती है।





