अंतरराष्ट्रीय अभिधम्म दिवस : बुद्ध विचार को समझने की दिशा में एक सार्थक पहल

ग्रेटर नोएडा:बौद्ध दर्शन के गूढ़ तत्वों को समझने में अभिधम्म की महत्ता को रेखांकित करते हुए इंटरनेशनल बौद्ध कॉन्फेडरेशन (IBC) ने गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय (GBU), ग्रेटर नोएडा, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान (लखनऊ) तथा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से शरद पूर्णिमा (अंतरराष्ट्रीय अभिधम्म दिवस) के अवसर पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।
सम्मेलन का विषय था – “The Relevance of Abhidhamma in Understanding Buddhist Thought: Text, Tradition, and Contemporary Perspectives”।
इस सम्मेलन का उद्देश्य बुद्धधम्म को अभिधम्म के माध्यम से समझना तथा उसके दार्शनिक, नैतिक और मनोवैज्ञानिक आयामों का विश्लेषण करना था। यह विद्वानों, आचार्यों और विद्यार्थियों के लिए बौद्ध दर्शन पर विमर्श का एक सशक्त मंच बना।
सम्मेलन में अभिधम्म और आधुनिक विज्ञान (मनोविज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, संज्ञानात्मक अध्ययन) के तुलनात्मक दृष्टिकोण पर विशेष सत्र आयोजित किए गए। इसमें 35 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें म्यांमार, कंबोडिया, वियतनाम और श्रीलंका के प्रतिष्ठित बौद्ध विद्वान सम्मिलित हुए।
उद्घाटन सत्र में गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राणा प्रताप सिंह ने अपने स्वागत भाषण में बुद्ध को “अब तक के सबसे महान शिक्षक” बताते हुए कहा कि बुद्ध का दर्शन मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस तक विस्तृत है। इन शिक्षाओं की स्पष्टता व्यक्ति के आत्म-विकास के साथ-साथ राष्ट्र के विकास में भी सहायक है।
IBC के महासचिव शार्त्से खेनसुर जंगचुप चोदेन रिनपोछे ने अपने मंगलाचरण में कहा कि बुद्धधम्म के प्रसार में अभिधम्म सूत्रों की समझ अनिवार्य है।
मुख्य वक्ता डॉ. उमा शंकर व्यास, जो पालि एवं संस्कृत के प्रख्यात विद्वान तथा भारत सरकार द्वारा राष्ट्रपति सम्मान-प्राप्त हैं, ने अभिधम्म के विकासक्रम का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने इसे “धम्म का विशेष प्रकाश” बताते हुए कहा कि इसके सूत्र “विशिष्ट बोध” का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मुख्य अतिथि तृतीय खेन्चेन रिनपोछे (द्रिकुंग काग्यू परंपरा) ने कहा कि अभिधम्म दिवस का वास्तविक अर्थ तभी सिद्ध होगा जब हम बुद्ध की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाएँ। उन्होंने कहा, “अभिधम्म अज्ञान को दूर करने, आसक्ति और क्रोध का प्रतिरोध करने तथा जीवन से अंधकार मिटाने का उपाय है।”
IBC के महानिदेशक श्री अभिजीत हालदार ने अपने संबोधन में अभिधम्म की आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह केवल मानसिक ही नहीं बल्कि शारीरिक संतुलन के लिए भी आवश्यक है।
विशेष सत्र में वेन. सुगतानंद भंते (महाबोधि सोसाइटी, बेंगलुरु), प्रो. बिमलेन्द्र कुमार (पूर्व वरिष्ठ प्राध्यापक, बीएचयू), तथा श्री पीयूष कुलश्रेष्ठ (विपश्यना रिसर्च सेंटर, मुंबई) ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
तकनीकी सत्रों में निम्न विषयों पर चर्चा हुई –
सिद्धांत और दार्शनिक आधार,अभिधम्म के अंतःविषयी दृष्टिकोण,तुलनात्मक और अंतरसांस्कृतिक अध्ययन,अभिधम्म की समकालीन प्रासंगिकता।
अवसर पर धारवाड़ (कर्नाटक) के श्री विनोद कुमार द्वारा संकलित बौद्ध डाक टिकटों की एक अनूठी प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें लगभग 90 देशों के 2500 से अधिक डाक टिकट प्रदर्शित किए गए। इन पर बुद्ध से संबंधित मंदिर, मठ, थंका, मंडल कला और अन्य बौद्ध प्रतीक दर्शाए गए थे। यह संग्रह लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और एशियन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है।
IBC द्वारा दो विशेष प्रदर्शनी भी आयोजित की गईं—
“Buddha Dhamma on Body and Mind” — यह प्रदर्शनी शरीर और मन के संबंध पर बुद्ध के उपदेशों को अभिव्यक्त करती है।
“Unearthing the Sacred Piprahwa” — इसमें 19वीं-20वीं शताब्दी के अंत में की गई पुरातात्विक खुदाइयों में प्राप्त बुद्ध के अस्थि एवं रत्न अवशेषों को दर्शाया गया। ये अवशेष बुद्ध के जीवन और उनके वंश की ऐतिहासिक कड़ी का प्रतीक हैं।
कार्यक्रम में दो डॉक्युमेंट्री फ़िल्में भी प्रदर्शित की गई“Dissemination of Buddha Dhamma in Asia” (IBC द्वारा निर्मित)
“Kushok Bakula Rinpoche – The Extraordinary Story of an Extraordinary Monk” (निर्देशक: डॉ. हिंदोल सेनगुप्ता, ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी)।
यह फ़िल्म कुशोक बकुला रिनपोछे के बहुआयामी व्यक्तित्व – एक विद्वान, दार्शनिक, समाज-सुधारक, राजनयिक और लोकप्रिय नेता – को श्रद्धांजलि देती है।
अभिधम्म दिवस उस अवसर का प्रतीक है जब बुद्ध ने तावतिंस स्वर्ग के देवताओं, विशेषतः अपनी माता महामाया को अभिधम्म का उपदेश दिया था। तत्पश्चात् उन्होंने यह ज्ञान अपने प्रमुख शिष्य आरहंत सारिपुत्त को प्रदान किया।
बुद्ध के समस्त उपदेश पालि भाषा में हैं, जो अभिधम्म से घनिष्ठ रूप से जुड़ी है। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने हाल ही में पालि भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है। अभिधम्म ग्रंथ पालि में रचित हैं, जो बौद्ध दर्शन के गहन मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक पक्षों को समझने की प्रमुख भाषा है।