भगवंत मान: कॉमेडियन से किंग तक
राजेश बैरागी(स्वतंत्र पत्रकार व लेखक)
मैंने उन्हें कभी गंभीरता से नहीं लिया। विशेषकर तब से जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में उनके बारे में कहा -पता नहीं कौन सी सस्ती दारू पिये रहते हैं।’ मैं हमेशा उन्हें एक ऐसा सरदार मानता रहा हूं जिसपर चुटकुले बनाए जा सकते हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके बारे में मेरी यही राय रही कि वो एक कठपुतली मुख्यमंत्री हैं जिनके धागे किसी दूसरे के हाथों की अंगुलियों के संकेतों पर चलते हैं। भगवंत मान ने सत्रह बरस गायकी और कॉमेडी में नाम कमाया। उन्हें यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की के बराबर नहीं रखा जा सकता है जो पहले कॉमेडियन ही थे।2012 में उन्होंने पंजाब के एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल पंजाब पीपुल्स पार्टी से विधानसभा का चुनाव लड़ा और हार गए।2014 और 2019 में उन्होंने आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर संगरूर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीते।इसी 20 जुलाई को इंडिया टीवी के आप की अदालत कार्यक्रम में मैंने उन्हें पहली बार गंभीरता से देखा और सुना।53 वर्षीय भगवंत मान में मुख्यमंत्री बनने के बाद भी बहुत कुछ नहीं बदला है। यदि उन्होंने नेताओं वाले कपड़े न पहनें हों तो वे अभी भी वही भगवंत मान हैं जो कभी मंच पर लोगों का मनोरंजन किया करता था। मूलतः एक कलाकार होने के कारण उनके हृदय के भाव उनके अधरों पर आ जाते हैं। अपनी बात पुष्ट करने के लिए वो जन जन में प्रचलित छोटी छोटी कहानियां सुनाने लग जाते हैं और दर्शकों की मांग पर गाने भी लगते हैं।आपकी अदालत कार्यक्रम के दौरान उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू और सुखबीर सिंह बादल सरीखे अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए एक सीमा तक पूरी इज्जत से बात की।जब मेजबान रजत शर्मा ने बताया कि सिद्धू कहते हैं कि भगवंत मान की सरकार में केवल उनकी पत्नी बदली है तो उन्होंने बगैर समय गवांए बताया कि सिद्धू की मां भी उनके पिता की दूसरी बीवी हैं। उन्होंने अपनी सवा साल पुरानी सरकार की उपलब्धियों के बारे में बताया कि 29237 लोगों को अभी तक सरकारी नौकरी दी गई है, पांच सौ से अधिक मुहल्ला क्लीनिक चलाए जा रहे हैं, 88 प्रतिशत घरों को छः सौ यूनिट तक निशुल्क बिजली दी जा रही है। एक विधायक एक पेंशन और महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा हटाने के अपनी सरकार के फैसलों का उन्होंने पूरी शिद्दत से पक्ष लिया।हालांकि आपकी अदालत कार्यक्रम में मेहमान से बहुत तीखे सवाल पूछने की परंपरा नहीं है, इसलिए पंजाब के मुख्यमंत्री से बहुत से ऐसे सवाल नहीं पूछे गए जो उनके और उनकी सरकार के लिए असहज हो सकते थे। फिर भी जो सवाल उनसे पूछे गए,उनका उन्होंने न केवल सामना किया बल्कि बेबाकी से जवाब भी दिए। उनके इस साक्षात्कार को देखने के बाद अनुभव हुआ कि अरविंद केजरीवाल ने उन्हें पंजाब का मुख्यमंत्री बनाकर कोई ग़लती नहीं की,