हमारी नदियां, हमारे भागीरथ
राजेश बैरागी (स्वतंत्र पत्रकार व लेखक)
भागीरथ गंगा के साथ साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से गुजरने वाली अन्य नदियों के अस्तित्व की रक्षा के लिए भागे फिर रहे हैं। एक विद्वान अधिकारी ग्रंथों के हवाले से बता रहे हैं कि श्रीकृष्ण के देह त्याग के पांच हजार वर्ष बाद गंगा पृथ्वी को छोड़ देंगी। क्या ग्रंथों में लिखा यह अनुमान सत्य हो चला है?हमारी नदियां कराह रही हैं।उनका आंचल मैला हो चुका है। उनकी देह से दुर्गंध आती है। सदा नीरा कहलाने का उनका अधिकार छिन चुका है।1975 में मैंने पहली बार किसी नदी को मैला ढोते देखा था।वह हिंडन नदी थी। उसमें गाजियाबाद नगर का सारा मैला एक नाले के माध्यम से डाला गया था।1978 की ऐतिहासिक बाढ़ में हिंडन नदी उसी नाले में वापस घुस कर गाजियाबाद नगर पर चढ़ आई थी। फिर मैंने यमुना को समूची दिल्ली का मैला ढोते देखा। इसके बाद हरिद्वार में मां गंगा को शहर भर के मैले को समेटे तेजी से दौड़ते देखा। नदियों में गंदे नाले छोड़ने का विचार कहां से आया होगा? मैं इस प्रश्न पर विचार करता हूं तो मुझे उन अधिकारियों और अभियंताओं पर संदेह होने लगता है जिन्होंने अपनी काबिलियत का उपयोग नदियों को बर्बाद करने में किया। ऐसे लोगों ने नदियों को खुदे खुदाए नाले मानकर अपने कर्तव्यों की गंदगी उनके हवाले कर दी। पिछले 39 वर्षों से (राजीव गांधी के प्रधानमंत्री होने से) नदियों की सफाई और उनके प्रदूषण मुक्त होने के न जाने कितने अभियान चलाए गए। कितने लाख करोड़ रुपए खर्च हो गए।न जाने कितने राजनेता, अधिकारी और स्वयंसेवी संगठन तर गये परंतु नदियों का आंचल और अधिक मैला होता गया। गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने एक दिन हिंडन नदी के तट पर स्वयं उसकी सफाई की थी। हालांकि यह प्रतीक मात्र था। हिंडन नदी की सफाई उसमें गिरने वाली गंदगी को रोककर ही की जा सकती है।राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से हिंडन नदी को प्रदूषण मुक्त न कर पाने के लिए जवाब तलब किया है। क्या अब हिंडन नदी प्रदूषण मुक्त हो जाएगी? मुझे नहीं लगता है कि एनजीटी हिंडन की गंदगी साफ करा सकता है। मुख्य सचिव भले ही स्वयं पेश होकर हिंडन के उद्धार का संकल्प लें परंतु यह कार्य अब असंभव की सीमा भी पार कर चुका है। दरअसल नदियों को कोई साफ नहीं करना चाहता है।2019 में मैं कुंभ में प्रयागराज गया था। वहां हर व्यवस्था के साथ मां गंगा का जल भी निर्मल था।ऐसा सरकार के चाहने से हुआ। जहां सरकार चाहे, नदियां केवल वहां वहां स्वच्छ हो सकती हैं। नदियां स्वयं मैली नहीं हुई हैं परंतु उन्हें स्वच्छ करने का धंधा बहुत बड़ा हो गया है।यह नदियों के साथ साथ देश के नागरिकों को भी छलने का धंधा है।न जाने कितने स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) गंगा, यमुना, हिंडन और न जाने किस किस नदी को साफ करने के नाम पर मोटी आमदनी कर रहे हैं। सरकारी विभाग और एनजीओ इस संयुक्त उद्यम के दो स्वाभाविक हिस्सेदार बन गए हैं। क्या नदियों को आने वाले कुछ वर्षों में स्वच्छ किया जा सकता है? एनजीटी के द्वार पर खड़े होकर भागीरथ यही प्रश्न बार बार पूछ रहे हैं,