कश्मीर: लोकतंत्र के पर्व के अधीन ( भाग-1)
राजेश बैरागी( स्वतंत्र पत्रकार व लेखक)
कश्मीर घाटी के 24 विधानसभा क्षेत्रों के लिए कल 18 सितंबर को वोट डाले जाएंगे। यह जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए एक दशक बाद हो रहे चुनाव के मतदान का पहला चरण होगा।दस वर्ष पूर्व हुए चुनाव और इस चुनाव में धरती आसमान का अंतर है।तब जम्मू-कश्मीर लद्दाख सहित एक पूर्ण राज्य होने के साथ कुछ मायनों में एक संप्रभु राज्य भी था। भारत राष्ट्र का हिस्सा होने के बावजूद उसका अपना संविधान और भारतीय दंड संहिता के स्थान पर रणवीर दंड संहिता लागू थे। अलगाववादी नेताओं का हुकूमत में पूरा दखल था और हुकूमत के नेताओं के चेहरे काफी कुछ अलगाववादियों से मेल खाते थे।2018 में पीडीपी की महबूबा मुफ्ती से नाता तोड़ भाजपा की केंद्र सरकार ने वहां की सरकार गिरा दी। राज्यपाल और उसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। पांच अगस्त 2019 का वह ऐतिहासिक दिन भी आया जब जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 व 35 ए को मोदी सरकार के गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में एक संकल्प पत्र पढ़कर हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। इसके साथ ही लद्दाख को अलग केंद्र शासित क्षेत्र घोषित करते हुए जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में एक अपूर्ण राज्य बना दिया गया।कल से शुरू हो रहे मतदान के जरिए चुनी जाने वाली आगामी सरकार उपराज्यपाल के अधीन होगी और पूर्व जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य के छः वर्ष के कार्यकाल के स्थान पर इस सरकार का कार्यकाल अन्य राज्यों के समान पांच वर्ष का होगा। जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान और रणवीर दंड संहिता अब इतिहास की वस्तु हैं जबकि भारतीय दंड संहिता भी इस एक जुलाई से भारतीय न्याय संहिता में बदल चुकी है। राजनीतिक रूप से जम्मू-कश्मीर की नई सरकार का स्वरूप कैसा होगा? चुनाव आयोग द्वारा सामान्य प्रेक्षक के तौर पर वहां भेजे गए उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी बी एन सिंह ने फोन पर हुई वार्ता में बताया है कि कश्मीर घाटी के लोगों में चुनाव को लेकर भारी उत्साह है।लोग जम्हूरियत के तहत अपनी सरकार चुनकर अपनी ताकत का अहसास कराना चाहते हैं। उन्हें शांति और विकास चाहिए। घाटी में किसका जोर चलेगा? इस प्रश्न के जवाब में वहां के निवासी और बीते वर्ष अक्टूबर में मेरी कश्मीर यात्रा में मेरे टैक्सी ड्राइवर रहे रईस बट ने फोन पर बताया कि कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस पहले नंबर पर हैं। पीडीपी की बहुत पूछ नहीं है परंतु इंजीनियर रशीद घाटी की राजनीति का नया घोड़ा है जिसकी ढाई चाल में कोई भी फंस सकता है। भाजपा के लिए घाटी अभी भी दुर्गम बनी हुई है।370 हटने का किसी को भी ज्यादा मलाल नहीं है परंतु पूर्ण राज्य का दर्जा छिनने का मलाल है कि कश्मीरियों के दिल से भुलाए नहीं भूलता। जारी.