विचार

जिला न्यायालय गौतमबुद्धनगर: मुकदमों के निस्तारण को लेकर दांव पेंच

राजेश बैरागी( स्वतंत्र पत्रकार व लेखक)

अदालतों में केवल न्याय नहीं होता, कितना न्याय किया इसका हिसाब किताब भी होता है। मंगलवार को कचहरी और दिनों जैसी चल रही थी। आमने-सामने न्यायाधीश, अधिवक्ता और वादकारी उपस्थित थे। एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने अदालत को सूचित किया कि उनके यहां चल रहे पांच मुकदमों में दोनों पक्षों में समझौता हो गया है, लिहाजा अदालत उन मुकदमों को अदम पैरवी में खारिज कर दे। वकील साहब ने अदालत से यह प्रार्थना बहुत ही सीधे स्वभाव से की थी। इसमें उन्होंने कोई चतुराई या किसी के अहित की बात नहीं की थी। दोनों पक्षों में समझौता हो जाए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। अदालतें भी अधिकांश अपराधिक मामलों को छोड़कर यही चाहती हैं कि आम नागरिकों को मुकदमों में नहीं उलझना चाहिए। परंतु अदालतें केवल न्याय ही नहीं करती हैं बल्कि नौकरी भी करती हैं। उन्हें न्याय का हिसाब किताब देना होता है। अदालत वरिष्ठ अधिवक्ता की इस प्रार्थना से प्रसन्न दिखाई नहीं दी। उसने अधिवक्ता से दोनों पक्षों का सुलहनामा दाखिल करने को कहा। अधिवक्ता ने दोनों पक्षों को बुलाने में असमर्थता जता दी। अदालत अब अधिवक्ता की चिरौरी पर उतर आई। उसने अधिवक्ता से कहा, तो मुकदमे वापस लेने का प्रार्थना पत्र ही दे दो।’ दरअसल अदम पैरवी में मुकदमे खारिज होना अदालत की उपलब्धियों में शामिल नहीं है। अदालत के लिए सबसे मुफीद तो मुकदमे का निस्तारण गुण दोष पर किया जाना ही माना जाता है चाहे उसमें दोनों पक्षों में समझौता ही क्यों न हो गया हो। समझौते के आधार पर भी मुकदमे को खारिज करने से अदालत द्वारा निस्तारण का रिकॉर्ड बनता है।मुकदमा वापसी के निवेदन को स्वीकार करने से भी अदालत की मेहनत दिखाई देती है। अधिवक्ता यह सब जानते हुए भी दोनों पक्षों में समझौता होने की दशा में मुकदमों को अदम पैरवी (पैरवी न होने)में खारिज कराने का सरल रास्ता अपनाते हैं।इसी बीच जानकारी मिली कि एक अन्य अदालत के आशुलिपिक को बुलाने के बावजूद न आने पर एक न्यायाधीश ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। न्यायाधीश के पास अपना आशुलिपिक (स्टेनोग्राफर) नहीं है।जिसे बुलाया गया वह अपनी अदालत के कामकाज में व्यस्त था। ऐसी परिस्थितियों में एक दिन में साढ़े छः लाख से अधिक मुकदमों का निस्तारण अदालतों की दैवीय शक्ति से ही संभव हो सका है,

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