ग्रेटर नोएडा

गौतमबुद्धनगर में किसान आंदोलन: मुख्य सचिव का प्राधिकरणों को समस्याओं को सुलझाने का आदेश परंतु समय-सीमा तय नहीं की

रिपोर्ट- राजेश बैरागी (स्वतंत्र पत्रकार)

गौतम बुध नगर:प्रेशर रिलीज करने और दबाव खारिज करने में केवल भाषाई अंतर के अलावा भी बहुत अंतर है। उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने नोएडा ग्रेटर नोएडा और यीडा के अधिकारियों को किसानों के मुद्दों को प्रमुखता से सुलझाने का आदेश दिया है। उन्होंने उन अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है जो किसानों की समस्याओं के समाधान में रुचि नहीं ले रहे हैं। मुख्य सचिव के इस आदेश और इस चेतावनी का क्या अर्थ है? यहां के किसानों की समस्याओं को कब तक सुलझा लिया जाएगा? मुख्य सचिव ने ऐसी कोई समय-सीमा तय नहीं की है।

गत 25 नवंबर से एक बार फिर तीनों प्राधिकरणों के विरुद्ध शुरू हुए किसानों के आंदोलन के असर में राज्य के मुख्य सचिव ने पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार सहित एक बार फिर आज जनपद गौतमबुद्धनगर का दौरा किया।उनका दौरा ऐसे समय में हुआ है जब स्थानीय सभी बड़े किसान नेताओं को जेल में रखा गया है और जनपद में किसी भी प्रकार के आंदोलन, मार्च, जुलूस और सभाओं पर कानून व्यवस्था के नाम पर रोक लगा दी गई है। हालांकि कल रविवार को कुछ हिंदुवादी संगठन बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध नोएडा गाजियाबाद में बड़ा प्रदर्शन करने जा रहे हैं। बताया गया है कि उन्हें पुलिस से शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की अनुमति प्राप्त हो गई है। उन्हें न जाने कितने लोगों के साथ प्रदर्शन की अनुमति मिली है परंतु इन संगठनों ने सोशल मीडिया पर एक एक लाख लोग इकट्ठा होने का दावा कर रखा है। बहरहाल बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाना भी आवश्यक है और किसानों की वर्षों पुरानी समस्याओं के समाधान के लिए आंदोलन करना भी गलत नहीं है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर आए मुख्य सचिव ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सभागार में तीनों प्राधिकरणों और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों से वर्तमान हालात का जायजा लिया और किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता पर सुलझाने का आदेश दिया। क्या प्राधिकरण अभी तक किसानों के मुद्दों को लटकाए हुए थे? प्राधिकरणों के अधिकारी तो कहते हैं कि किसानों की प्रमुख मांगों से संबंधित सभी प्रस्ताव शासन के समक्ष लंबित हैं।गत 27 अगस्त को हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट पर तीन महीने बाद भी शासन द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया है। फिर शासन के मुखिया कहां के अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दे रहे हैं?मेरा दृढ़ मत है कि यहां के प्राधिकरणों को अपने मामले स्वयं सुलझाने चाहिएं। उन्हें शासन का मुंह क्यों देखना चाहिए। मुख्य सचिव ने प्राधिकरणों को किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए कोई समय-सीमा भी तय नहीं की है। तो मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक का एक साथ आने का क्या मतलब था? मैं फिर प्रेशर रिलीज करने और दबाव खारिज करने के अंतर पर आता हूं। इतने बड़े अधिकारियों के आने और प्राधिकरणों के अधिकारियों को डांटने से यहां व्याप्त तनाव का प्रेशर रिलीज हो सकता है। क्या इस प्रकार की गतिविधियों से दबाव खारिज भी किया जा सकता है? इस प्रश्न को किसानों की समस्याएं सुलझने तक स्थगित कर लुक्सर जेल चलते हैं। बताया जा रहा है कि वहां बंद किसान नेताओं ने भूख हड़ताल शुरू कर दी है,

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