7 देशों के वैश्विक फ़ार्मास्युटिकल नेतृत्व ने किया सहभाग गलगोटियास के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘फार्माइनोवेट 2025’ में उमड़ा वैश्विक जमावड़ा

ग्रेटर नोएडा:गलगोटियास कॉलेज ऑफ फार्मेसी में दो दिवसीय द्वितीय फार्मइनोवेट समिट-2025 का सफल आयोजन किया गया। “अणु से औषधि : दवा विकास, दवा वितरण तकनीक और जीवनरक्षक उपचार” विषय पर आधारित इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में देश-विदेश के प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं तथा औद्योगिक विशेषज्ञों ने भाग लिया। सम्मेलन का उद्देश्य औषधि विज्ञान, नवोन्मेषी तकनीकों तथा दवा वितरण प्रणाली में हो रहे सतत विकास पर विचार-विमर्श करना था।
कॉलेज के अध्यक्ष श्री सुनील गलगोटिया ने इस प्रेरणादायी कार्यक्रम के लिए पूरी टीम को बधाई देते हुए शिक्षा-अनुसंधान क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ. ध्रुव गलगोटिया, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, गलगोटियास कॉलेज ऑफ फार्मेसी, द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि ऐसे सम्मेलन ज्ञान-विनिमय, सहयोग तथा अनुसंधान-उन्मुख वातावरण को मजबूत बनाते हैं।
पहले दिन की शुरुआत, स्वीडन की उप्साला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व्लादिमिर टॉल्माचेव ने “इंजीनियर्ड स्कैफोल्ड प्रोटीन के द्वारा घातक ट्यूमर का लक्ष्यीकरण” विषय पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए ये प्रोटीन कैंसर कोशिकाओं को सटीक रूप से पहचानकर उपचार को अधिक लक्षित और प्रभावशाली बनाते हैं।
इसके पश्चात आयरलैंड के डबलिन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वेनशिन वांग ने “उच्च-क्षमता जीन-प्रेषण अभिकर्मकों की अगली पीढ़ी” विषय पर जानकारी दी। उन्होंने आधुनिक जैव-सामग्रियों की उपयोगिता और जीन-उपचार तथा पुनर्योजी चिकित्सा में उनके संभावित योगदान को रेखांकित किया।
इसके पश्चात ब्राज़ील की साओ पाउलो विश्वविद्यालय की प्रोफेसर रेनाटा फोन्सेका वियाना लोपेज़ के व्याख्यान से हुई, जिन्होंने “बाधाओं को पार करना : सटीक दवा वितरण हेतु विद्युत प्रवाह और नैनो-प्रौद्योगिकी” विषय पर जानकारी दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि हल्के विद्युत संकेतों और नैनो आकार के वाहक-तंत्रों के उपयोग से दवाएँ शरीर की प्राकृतिक बाधाओं को अधिक प्रभावी ढंग से पार कर सकती हैं। इससे दवाओं को सही स्थान पर नियंत्रित रूप से पहुँचाया जा सकता है तथा अनावश्यक दुष्प्रभावों में कमी लायी जा सकती है।
इसके पश्चात डेनमार्क के कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एच.सी. थॉमस राडेस ने “औषधियों के ठोस-रूप की विविधता — अमोर्फ यौगिकों पर विशिष्ट दृष्टि” विषय पर प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि दवाओं के ठोस-रूप उनकी घुलनशीलता, स्थिरता और जैव-उपलब्धता को किस प्रकार प्रभावित करते हैं तथा इन चुनौतियों से निपटने हेतु विकसित की जा रही नई तकनीकों पर भी प्रकाश डाला।
इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के डॉ. हरेंद्र पारेख ने “उद्योग-अकादमिक सहयोग : नवाचार के संगम पर” विषय पर प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालयों और औद्योगिक संस्थानों के बीच मजबूत सहभागिता कैसे नई तकनीकों के विकास और उनके व्यावहारिक उपयोग को तेज गति दे सकती है।
सभी सत्रों के उपरांत विद्यार्थी एवं शोधार्थियों द्वारा मौखिक एवं पोस्टर-प्रदर्शन भी किया गया।
सम्मेलन को अभूतपूर्व प्रतिक्रिया प्राप्त हुई — 1300 से अधिक पंजीकरण तथा लगभग 400 शोध-सार प्रस्तुतियों हेतु प्राप्त हुए। चयनित शोध-सार स्कोपस-सूचीबद्ध ‘जर्नल ऑफ एप्लाइड फार्मास्यूटिक्स’ में प्रकाशित किए गए, जिससे शोधकर्ताओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष मान्यता मिली।






