ग्रेटर नोएडा

पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो प्रधानमंत्री मोदी की भगवान बुद्ध की विरासत के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है- डॉ अनिर्बन गांगुली 

ग्रेटर नोएडा:गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन एवं सभ्यता विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला “सूत्त पिटक पाली में बौद्ध सामाजिक नैतिक दृष्टिकोण” का आज समापन हुआ। इस कार्यशाला में देशभर से प्रतिष्ठित विद्वानों ने भाग लिया और बौद्ध दर्शन, सामाजिक न्याय तथा समकालीन समाज में इसकी प्रासंगिकता पर विचार विमर्श किया।

कार्यशाला के दूसरे दिन दो अकादमिक सत्र आयोजित किए गए। प्रथम सत्र: “सूत्त पिटक पाली में बौद्ध सामाजिक दर्शन” इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. प्रदीप घोकला (पुणे विश्वविद्यालय) ने की। उन्होंने डॉ. बी.आर. आंबेडकर के बौद्ध धर्म की ओर आकर्षण एवं बौद्ध धर्म में न्याय की अवधारणा पर चर्चा की। इसके बाद, प्रो. एच.पी. गंगनेगी ने बौद्ध धर्म के विभिन्न मतों, महायान दर्शन एवं तांत्रिक बौद्ध परंपरा में विभिन्न प्रतिमाओं की व्याख्या की। प्रो. उमा चक्रवर्ती, जो एक प्रतिष्ठित बौद्ध विदुषी हैं, ने बौद्ध धर्म में महिलाओं की स्थिति पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए।

द्वितीय सत्र: “बौद्ध धर्म की वैश्विक प्रासंगिकता एवं सामाजिक सरोकार”

इस सत्र में प्रो. स्वरूपा रानी (आचार्य नागार्जुन विश्वविद्यालय) ने दक्षिण एवं उत्तर भारत के उन सामाजिक बौद्ध नेताओं पर प्रकाश डाला, जिनके योगदान को अपेक्षित पहचान नहीं मिली। इसके बाद, प्रो. एन. सुकुमार (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने बुद्ध को सभी महान नेताओं का अग्रदूत बताया और यह प्रेरणादायक विचार प्रस्तुत किया कि महात्मा गांधी और डॉ. आंबेडकर ने बुद्ध की शिक्षाओं को ही आगे बढ़ाया। डॉ. प्रवीण कुमार (सुभारती विवेकानंद विश्वविद्यालय) ने महायान दर्शन की गूढ़ अवधारणाओं पर चर्चा की, जबकि डॉ. चंद्र कीर्ति ने डॉ. आंबेडकर के विचारों की वर्तमान सामाजिक संदर्भ में प्रासंगिकता पर बल दिया।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ. अनिर्बान गांगुली (अध्यक्ष, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन) ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत और विश्व में भगवान बुद्ध की विरासत के संरक्षण और संवर्धन हेतु किए गए कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार एवं तीसरी बार शपथ ग्रहण के 10 दिनों के भीतर इसका उद्घाटन एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इसके अलावा, पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो प्रधानमंत्री मोदी की भगवान बुद्ध की विरासत के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

डॉ. गांगुली ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल इन ऐतिहासिक मांगों को पूरा किया है, बल्कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के स्वप्न को भी साकार किया है। उन्होंने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और उनके पिता अशुतोष मुखर्जी के बौद्ध एवं पाली अध्ययन को बढ़ावा देने में दिए योगदान को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि पाली भाषा वैश्विक आपसी संबंधों की भाषा है, और भारत का इसमें विशेष स्थान है। गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में आयोजित यह कार्यशाला पाली और बौद्ध अध्ययन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है

कार्यशाला का समापन डॉ. शिवसाई द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. श्वेता आनंद ने की, और आयोजन समिति के सदस्यों को मुख्य अतिथि डॉ. गांगुली द्वारा सम्मानित किया गया। इस अवसर पर 100 से अधिक प्रतिभागियों ने सहभागिता की। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से उपस्थित शिक्षकों में डॉ. अरविंद, डॉ. पासवान, डॉ. मित्रा, डॉ. शाक्य, डॉ. मेश्राम, श्री विक्रम, कन्हैया, संदीप और अजय शामिल थे।

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