दिव्यांगजनों को भी मिले प्रजनन संबंधी न्याय- डॉ. तालीम अख्तर

ग्रेटर नोएडा:गलगोटियास विश्वविद्यालय के लॉ डिपार्टमेंट के अंर्तगत डिसएबिलिटी राइट्स क्लिनिक द्वारा प्रजनन संबंधी न्याय एवं विकलांगता अधिकार: दिव्यांगता भेदभाव का मिथक’” विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के प्रजनन और यौन अधिकार से संबंधित दृष्टिकोण को समझना था।
कार्यशाला की शुरुआत करते हुए प्रो. अवंतिका तिवारी ने अपने स्वागत भाषण में इस विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत में प्रचलित दिव्यांगता संबंधी कानून अभी भी पुराने दृष्टिकोण पर आधारित हैं और प्रजनन, परिवार नियोजन तथा शारीरिक स्वायत्तता के जटिल मुद्दों पर अभी भी व्यापक चर्चा और सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने गर्व से बताया कि गलगोटियास विश्वविद्यालय की डिसएबिलिटी राइट्स क्लिनिक, देश के विधि संस्थानों में ऐसी पहली पहल है जो दिव्यांगजनों के अधिकारों के लिए समर्पित है।
सुश्री हेमा कुमारी ने अपने व्याख्यान में बताया कि किस प्रकार समाज में दिव्यांग महिलाओं की यौनिकता को नजरअंदाज़ किया जाता है। उन्होंने बताया कि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सेक्स शिक्षा और परामर्श की अत्यधिक कमी है। उन्होंने अपील की कि शैक्षणिक संस्थानों, परिवारों और नीति-निर्माताओं को अधिक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
डॉ. तालीम अख्तर ने अपने सत्र की शुरुआत अपने व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों से की, जहाँ उन्होंने बताया कि कैसे दृष्टिहीनता के बावजूद उन्होंने राजनीति विज्ञान में एक सफल शैक्षणिक यात्रा तय की। उन्होंने आरपीडब्लूडी अधिनियम 2016 की आलोचना करते हुए कहा कि यह कानून प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दों को सीमित दृष्टिकोण से देखता है। उन्होंने न्यायपालिका की एक ऐतिहासिक टिप्पणी का हवाला दिया जिसमें एक दिव्यांग महिला की सहमति के बिना गर्भपात को असंवैधानिक ठहराया गया था।
श्री सलमान ख़ान ने अपने प्रस्तुतीकरण में कानूनी इतिहास का विश्लेषण करते हुए अमेरिका के चर्चित Buck v- Bell (1927) निर्णय का उल्लेख किया, जहाँ दिव्यांग महिला के जबरन नसबंदी को वैध ठहराया गया था। उन्होंने बताया कि भारत में भले ही ऐसी नसबंदी को खुलकर अनुमति नहीं दी गई हो, लेकिन कानूनों की अस्पष्टता के चलते दिव्यांग महिलाओं के साथ ज़बरदस्ती की घटनाएँ अब भी सामने आती हैं।
लॉ डिपार्टमेंट के डिसएबिलिटी राइट्स क्लिनिक ने भविष्य में भी ऐसे विमर्श को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया, जिससे राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर दिव्यांग अधिकारों और प्रजनन न्याय पर सकारात्मक प्रभाव डाला जा सके।