गौतमबुद्धनगर कमिश्नरेट पुलिस:पुलिस चौकी के शीर्ष पर बिल्डर का छत्र
राजेश बैरागी(वरिष्ठ पत्रकार)
पीपीपी मॉडल के तहत जनसुविधाओं से जुड़ी योजनाओं को पूरा करने के लिए किस प्रकार के लोगों अथवा कंपनी को सरकारी संस्थान अपना सहयोगी बना सकते हैं? क्या सरकारी नियम कानून को तोड़ने वाले लोगों या कंपनी का सहयोग लेकर उसके गलत काम का प्रचार भी सरकारी संस्थान द्वारा किया जा सकता है? गौतमबुद्धनगर कमिश्नरेट पुलिस के थाना सूरजपुर की तिलपता गोलचक्कर पुलिस चौकी के सिर पर एक ऐसे बिल्डर का बोर्ड लगाया गया है जो पांच सौ मीटर दूर और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में कई अधिसूचित जमीनों पर बिना नक्शा पास कराए और बिना किसी अनुमति के फ्लैट बनाकर बेच रहा है।
पीपीपी मॉडल कोई नया नहीं है। सदियों पुरानी प्रशासनिक सामाजिक व्यवस्था में मूलभूत नागरिक सुविधाओं की स्थापना प्रशासन और नगर सेठों के संयुक्त प्रयासों से की जाती रही हैं। प्याऊ, धर्मशाला,सराय, चौराहों पर यात्रियों व पशुओं के लिए छाया के इंतजाम इसी प्रकार के संयुक्त प्रयासों के बेहतरीन उदाहरण हैं। ऐसे जनोपयोगी संयुक्त उपक्रमों में धन का सहयोग करने वाले लोगों का किसी गैरकानूनी कार्य में लिप्त न होने की शर्त अनिवार्य होती थी। पुलिस चौकी का निर्माण भी एक जनसुविधा ही है। पुलिस चौकियों का निर्माण आमतौर पर जनसहयोग से ही किया जाता है। क्या पुलिस चौकी का निर्माण ऐसे व्यक्ति या संस्था द्वारा कराया जा सकता है जो गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल हो? तिलपता गोलचक्कर पर नवनिर्मित पुलिस चौकी के शीर्ष पर पुलिस चौकी के बोर्ड के आधे हिस्से पर एस्कॉन इंफ्रा रियल्टर्स का कब्जा है। यह बिल्डर निकट ही गुलिस्तान पुर गांव की अधिसूचित भूमि पर बिना नक्शा पास कराए तथा बगैर किसी सरकारी अनुमति के डूप्लेक्स भवन बना कर बेच रहा है। यही बिल्डर गांव बिरौंडी में भी इसी प्रकार फ्लैट बना रहा है जिसके विरुद्ध ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण अदालत जाने की तैयारी कर रहा है। बोर्ड पर हिस्सेदारी से निश्चित है कि पुलिस चौकी के निर्माण में बिल्डर का बड़ा योगदान रहा होगा। क्या किसी प्रशासनिक या अदालती आदेश के पालन में पुलिस ऐसे बिल्डर पर कार्रवाई कर सकती है? बुजुर्गो की कहावत है कि जहां मुंह खाता है वहां आंखें लजा जाती हैं,