विचार

सरकार की नीतियाँ और जलवायु संकट : विकास की रफ्तार पर भारी पड़ता पर्यावरण “ट्री मैन”

आगरा: जलवायु परिवर्तन आज पूरे विश्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। जैसा कि आप सभी जानते हैं, ट्री मैन त्रिमोहन मिश्रा जलवायु परिवर्तन रक्षक एवं चेतावनी जागरूकता संदेश वाहक हैं अनुमान मुताबिक, वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के अनुसार भारत में इस संकट को और गंभीर बनाने में सरकारी नीतियों और फैसलों की बड़ी भूमिका है। विकास के नाम पर लिए जा रहे कई निर्णय, पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं।

कोयले पर बढ़ती निर्भरता : भारत में आज भी बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा साधन कोयला है। नई-नई खदानों को मंजूरी मिल रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, कोयले से निकलने वाला धुआँ और कार्बन डाइऑक्साइड जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी वजह है।

जंगलों की कटाई से बिगड़ता संतुलन : खनन, सड़क, बाँध और औद्योगिक प्रोजेक्ट्स के लिए बड़े पैमाने पर जंगल काटे जा रहे हैं। इससे न केवल कार्बन अवशोषण की क्षमता घट रही है, बल्कि जंगली जीव-जंतु और प्राकृतिक संतुलन भी खतरे में हैं।

शहरीकरण और प्रदूषण : तेज़ी से बढ़ते शहरों में हरियाली की जगह कंक्रीट लेता जा रहा है। नतीजतन, तापमान लगातार बढ़ रहा है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था कमजोर होने से लोग निजी वाहनों पर निर्भर हैं, जिससे प्रदूषण की समस्या और गंभीर हो रही है।

पशु-पक्षियों की स्वादहत्या और कष्टदायी पालन : ट्री मैन का कहना है कि जलवायु संकट को बढ़ाने में पशु-पक्षियों की बड़े पैमाने पर हत्या और औद्योगिक पशुपालन भी अहम कारण है। मांस उद्योग से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसें (मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड) वायुमंडल को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं। वहीं, पशुओं और पक्षियों की लगातार हत्या से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र भी असंतुलित हो रहा है।

नदियों पर दबाव : बड़े-बड़े बाँध और उद्योगों से निकलने वाले रसायन नदियों को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं। गंगा और यमुना जैसी नदियाँ अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। इससे पानी का प्राकृतिक चक्र भी प्रभावित हो रहा है।

नवीकरणीय ऊर्जा की धीमी रफ्तार : हालांकि सरकार सौर और पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने की घोषणाएँ करती है, लेकिन हकीकत में कोयले से दूरी बनाने की रफ्तार बेहद धीमी है।

कानूनों का पालन नहीं : पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कई नियम कागज़ों पर ही सीमित रह जाते हैं। जब विभिन्न प्रकार से पर्यावरणीय संकट आता है तो वैज्ञानिक क्या करते हैं, कई बार बड़े प्रोजेक्ट बिना सही पर्यावरणीय आकलन के मंज़ूरी पा लेते हैं।

ट्री मैन त्रिमोहन मिश्रा जब तक सरकारें आर्थिक विकास को ही प्राथमिकता देती रहेंगी और पर्यावरण को पीछे छोड़ देंगी, तब तक जलवायु संकट थमने वाला नहीं है।

असली विकास वही होगा, जिसमें प्रकृति और प्रगति दोनों का संतुलन कायम रहे।

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