ग्रेटर नोएडादिल्ली एनसीआर

ग्रेटर नोएडा और यूपीसीडा के बीच त्रिलोकपुरम:तेली का तेल जले तो जले

राजेश बैरागी (वरिष्ठ पत्रकार)

हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है। यूपीसीडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की छाती पर गुलिस्तान पुर गांव की लगभग सौ बीघा भूमि पर विकसित की जा रही कॉलोनी त्रिलोकपुरम के संबंध में समाचारों के प्रकाशन पर भी यही हुआ। सैकड़ों करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े करना कोई मजाक नहीं है। इसके लिए बाकायदा साक्ष्य और अधिकारियों के कमेंट्स की आवश्यकता होती है। हमने यही किया। सर्वप्रथम जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा से इस कॉलोनी के बनने के बारे में पूछा। उन्होंने अनभिज्ञता जताते हुए यूपीसीडा के क्षेत्रीय प्रबंधक से रिपोर्ट तलब कर ली। हमने भी यूपीसीडा के क्षेत्रीय प्रबंधक से पूछा तो उन्होंने बताया कि यह भूमि न्यायालय के आदेश से अधिग्रहण मुक्त की जा चुकी है परंतु अधिग्रहण की अधिसूचना से मुक्त नहीं है। इस कॉलोनी के रास्ते यूपीसीडा की साइट सी औद्योगिक क्षेत्र की सड़कों पर खुलने के प्रश्न पर उन्होंने रास्ते बंद कराने की बात कही। जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी ए के सिंह ने इस कॉलोनी का मानचित्र पास कराने के लिए एक फाइल लंबित बताई। साथ ही यह भी बताया कि इस प्रकार की कॉलोनी का मानचित्र पास करने का जिला पंचायत को कोई अधिकार नहीं है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी रवि कुमार एनजी ने प्राधिकरण के अधिसूचित गांव गुलिस्तान पुर की भूमि पर प्राधिकरण की बिना अनुमति विकसित हो रही इस कॉलोनी के विरुद्ध कार्रवाई करने की बात कही।
मुझे इस कॉलोनी के विकासकर्ताओं का कष्ट समझ में आता है। जिसका नुकसान होगा, वह झूठे सच्चे आरोप भी लगाएगा और वह उसके विरुद्ध उठ रही आवाजों को शांत कराने का हरसंभव प्रयास करेगा। मैं ऐसी किसी भी प्रतिक्रिया के लिए हमेशा प्रस्तुत रहता हूं और आरोप प्रत्यारोप से विचलित भी नहीं होता हूं। परंतु जो लोग इस प्रोजेक्ट से प्रत्यक्ष रूप से कहीं से भी नहीं जुड़े हैं,उनका दुखी होना समझ से बाहर है। विशेष तौर पर मेरे पत्रकारिता जगत के साथी त्रिलोकपुरम के संबंध में मेरे और मेरे सहयोगियों द्वारा प्रकाशित किए गए समाचारों से काफी आहत बताए जा रहे हैं। यदि त्रिलोकपुरम के कर्ताधर्ताओं से कोई सहानुभूति या वैध अवैध संबंध हैं तो खुलकर बोलो ना यार।एक निवर्तमान पुरोधा पत्रकार के स्पष्ट तौर पर यह स्वीकार करने से बहुत अच्छा लगा कि उसके इस कॉलोनी के विकासकर्ताओं से घरेलू और व्यापारिक रिश्ते हैं। मुझे वैसे पत्रकारों पर दया आती है जो यातायात पुलिस के रोकने पर गाड़ी के दस्तावेज और ड्राईविंग लाईसेंस दिखाने के स्थान पर प्रैस का कार्ड दिखाने लगते हैं या पत्रकार होने का रौब झाड़ने लगते हैं।त्रिलोकपुरम के प्रमोटर्स को भी चाहिए कि यदि उनके पास शासन प्रशासन प्राधिकरण से कॉलोनी विकसित करने की कोई वैध अनुमति है तो उसे सार्वजनिक करें। ऐसे आरोप प्रत्यारोपों से अवैध कॉलोनी वैध तो नहीं हो सकती है,

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