गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय प्रदर्शनी “सिद्धं कैलीग्राफी – रूप-ब्रह्म की अभिव्यक्ति” का उद्घाटन

ग्रेटर नोएडा: आज गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के ज्योतिबा फुले ध्यान केंद्र में आज तीन दिवसीय विशेष प्रदर्शनी “सिद्धं कैलीग्राफी – रूप-ब्रह्म की अभिव्यक्ति” का भव्य उद्घाटन हुआ। इस प्रदर्शनी का आयोजन बौद्ध अध्ययन एवं सभ्यता विभाग, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय द्वारा इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज (ICCS) और तत्वम फाउंडेशन के सहयोग से किया गया है।
इस प्रदर्शनी का उद्घाटन गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राणा प्रताप सिंह एवं वें. लामा छोपेल ज़ोत्पा, डिप्टी सेक्रेटरी जनरल, इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कॉन्फेडरेशन द्वारा किया गया। इस अवसर पर वें. भिक्षु दो-वूंग, जो इस प्रदर्शनी के क्यूरेटर हैं, सहित अनेक विद्वान, कलाकार, संस्कृति प्रेमी, छात्र, भिक्षु और भिक्षुणियाँ उपस्थित रहीं।
अपने उद्घाटन भाषण में प्रो. राणा प्रताप सिंह ने सिद्धं लिपि की ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्ता पर प्रकाश डाला और यह भी कहा कि लेखन कला ही मनुष्यों को अन्य प्राणियों से अलग करती है तथा ज्ञान के संरक्षण का माध्यम है।
वें. भिक्षु दो-वूंग ने सिद्धं लिपि के विकास और उसकी भूमिका पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यह प्रदर्शनी संस्कृति विनिमय का सेतु है, जो भारतीय और पूर्वी एशियाई बौद्ध परंपराओं को जोड़ती है। उन्होंने कहा कि सिद्धं लिपि, ब्राह्मी लिपि की परिष्कृत शाखा है, जिसने छठी से आठवीं शताब्दी ईस्वी के दौरान चीन, कोरिया और जापान में बौद्ध शिक्षाओं के प्रसार में अहम भूमिका निभाई, विशेषकर मंत्रयान परंपरा के माध्यम से जिसमें मंत्रों की रहस्यमय शक्ति पर विश्वास किया जाता है।
प्रो. श्वेता आनंद, अधिष्ठाता, बौद्ध अध्ययन विभाग ने अपने स्वागत भाषण में प्राचीन विरासत को संरक्षित करने में भाषा की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने इसे भारतीय ज्ञान प्रणाली और नई शिक्षा नीति 2020 से जोड़ते हुए कहा कि भाषाओं और लिपियों के प्रचार-प्रसार की दिशा में यह प्रयास अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रदर्शनी में यह भी बताया गया कि अमोघवज्र, शुभाकरसिंह और वज्रबोधि जैसे बौद्ध आचार्यों ने सिद्धं लिपि के माध्यम से बौद्ध मंत्रों और ग्रंथों को लिपिबद्ध कर पूर्वी एशिया में फैलाया। आज भी सिद्धं लिपि को वहाँ धार्मिक अनुष्ठानों में पवित्र माना जाता है।
डॉ. अरविंद कुमार सिंह, कार्यक्रम समन्वयक ने प्रदर्शनी की विशेषताओं पर प्रकाश डाला:कैलीग्राफी प्रदर्शन: सिद्धं लिपि की सुंदर एवं आध्यात्मिक गहराई को दर्शाते हुए कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं।
दुर्लभ पांडुलिपियाँ: जापान के होर्यूजी मठ से उनिशा विजया धारणी एवं प्रज्ञापारमिताहृदय सूत्र की प्रतिकृतियाँ।
संस्कृतिक संवाद: समकालीन कला और अध्यात्म में सिद्धं की प्रासंगिकता पर परिचर्चा।
प्रदर्शनी में अलबरूनी की पुस्तक ‘इंडिया’ और ई-चिंग के यात्रा वृतांतों का भी उल्लेख है, जो सिद्धं की वैश्विक सराहना को दर्शाते हैं।
डॉ. चिंताला वेंकट शिवसाई, सह-संयोजक ने कहा कि यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक कूटनीति का प्रतीक है तथा यह कला, इतिहास और अध्यात्म के संगम से प्राचीन ज्ञान की पुनर्पुष्टि का माध्यम है।
यह प्रदर्शनी 17 अप्रैल, 2025 तक आम जनता के लिए खुली रहेगी। कला, संस्कृति, अध्यात्म और इतिहास में रुचि रखने वाले सभी लोग इस अद्वितीय सांस्कृतिक उत्सव में सादर आमंत्रित हैं।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अनेक प्रतिष्ठित शिक्षक उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख हैं – डॉ. प्रियतर्शिनी मित्रा, डॉ. चंद्रशेखर पासवान, डॉ. ज्ञानदित्य शाक्य, डॉ. मनीष मेश्रराम, विक्रम सिंह, डॉ. चंदन कुमार, डॉ. नीरज यादव, डॉ. ओमवीर सिंह, डॉ. संदीप कुमार द्विवेदी एवं अन्य,