ग्रेटर नोएडा

गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में न्यूरो एवं बायोफीडबैक प्रशिक्षण का अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित

ग्रेटर नोएडा:गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान एवं मानसिक स्वास्थ्य विभाग में ‘न्यूरो एंड बायोफीडबैक ट्रेनिंग एवं सर्टिफिकेशन प्रोग्राम’ का शुभारंभ अत्यंत गरिमामय एवं शैक्षणिक वातावरण में हुआ। यह तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम मनोविज्ञान एवं मानसिक स्वास्थ्य विभाग, मानविकी एवं समाज विज्ञान संकाय, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के तत्वावधान में, न्यूरोथेरेपी एंड बायोफीडबैक सोसाइटी (एन.ए.बी.एस, इंडिया) तथा शेलनबर्ग इंस्टीट्यूट फॉर इंटीग्रेटेड मेडिसिन एंड साइंस, जर्मनी के सहयोग से आयोजित किया गया।

उदघाटन सत्र की शुरुआत मां सरस्वती और भगवान बुद्ध की वंदना एवं दीप प्रज्जवलन करके किया गया,

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तौर पर डॉ राजिंदर के धमीजा, निदेशक, इहबास, नई दिल्ली सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर जिम्स के निदेशक डॉ ब्रिगेडियर राकेश गुप्ता , स्केलनबर्ग इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन जर्मनी के निदेशक डॉ रूडिगर, इहबास नई दिल्ली की प्रोफेसर डॉ विभा शर्मा एवं गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता शैक्षणिक डॉ राजीव वाष्र्णेय, अधिष्ठाता प्रो. बंदना पांडे (अधिष्ठाता, मानविकी एवं समाज विज्ञान संकाय), और डॉ. विश्वास त्रिपाठी (कुलसचिव) शामिल रहे। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन मनोविज्ञान एवं मानसिक स्वास्थ्य विभागाध्यक्ष डॉ. आनंद प्रताप सिंह के कुशल नेतृत्व में संपन्न हुआ। सभी के सहयोग से यह आयोजन अकादमिक उत्कृष्टता, शोध संवेदनशीलता और व्यावहारिक प्रशिक्षण का एक सफल उदाहरण बन सका।

कार्यक्रम के आरंभ में सभी अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ अर्पित कर किया गया। तत्पश्चात् डॉ. आनंद प्रताप सिंह ने न्यूरो फीडबैक और बायोफीडबैक के वैज्ञानिक, चिकित्सीय और शोध संबंधी आयामों पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि यह प्रशिक्षण केवल तकनीकी अधिगम का माध्यम नहीं, बल्कि मानव मस्तिष्क की कार्यप्रणाली, आत्म-नियंत्रण और मानसिक सामंजस्य को गहराई से समझने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।

डॉ. रूडिगर शेलनबर्ग ने अपने सत्र में न्यूरोफीडबैक और बायोफीडबैक की कार्यप्रणाली पर अत्यंत प्रभावशाली और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति दी। उन्होंने विस्तार से बताया कि ये तकनीकें मस्तिष्क और शरीर की गतिविधियों के बीच सूक्ष्म संबंधों को समझने और नियंत्रित करने का माध्यम हैं। बायोफीडबैक तकनीक शरीर की जैविक प्रक्रियाओं जैसे हृदय गति, श्वसन और त्वचा की विद्युत प्रतिक्रिया को मॉनिटर कर आत्म-नियंत्रण को प्रोत्साहित करती है। डॉ. शेलनबर्ग ने बताया कि इसका उपयोग न केवल मानसिक विकारों जैसे तनाव, चिंता, अवसाद और एडीएचडी में किया जा सकता है, बल्कि यह समग्र मानसिक स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को भी सशक्त रूप से बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रही हैं।

मुख्य अतिथि डॉ राजिंदर धमीजा ने इसके व्यापक प्रयोग पर बल दिया और बताया कि न्यूरो एंड बायोफीडबैक थेरेपी हेल्दी ब्रेन के लिए एक आवश्यक एवं मिल का पत्थर तकनीकी साबित हो सकती है। अधिष्ठाता शैक्षणिक डॉ राजीव वाष्र्णेय ने न्यूरो एंड बायोफीडबैक थेरेपी को टी एम एस के साथ जोड़ कर उपचार पद्धति को विकसित करने पर जोर दिया। कुलसचिव डॉ विश्वास त्रिपाठी ने बायोफीडबैक थेरेपी को पेन मैनेजमैंट के लिए उपयोग करने की जरूरत को समझाया। प्रो बंदना पाण्डेय ने बताया कि इस तरह के और कार्यक्रम कराने की जरूरत है जिससे कि और लोगों को इस विधा से जोड़ा जा सके।

कार्यक्रम के समापन में सभी अतिथियों, वक्ताओं और आयोजन दल के सदस्यों को अंगवस्त्र एवं मेंमेंटो के द्वारा सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम के समापन अवसर पर विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अन्नू मलिक ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया और सभी अतिथियों, सहयोगी संस्थाओं तथा प्रतिभागियों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त की।

अंत में विभागाध्यक्ष डॉ. आनंद प्रताप सिंह ने माननीय कुलपति प्रो. राणा प्रताप सिंह के प्रेरक नेतृत्व और सतत प्रोत्साहन के लिए विशेष धन्यवाद अर्पित किया। उन्होंने यह भी कहा कि मनोविज्ञान एवं मानसिक स्वास्थ्य विभाग भविष्य में भी इस प्रकार के अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण एवं शोध कार्यक्रमों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में नवाचार और उत्कृष्टता के नए आयाम स्थापित करता रहेगा।

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