अर्धनारीश्वर स्वरुप का आज के युग में क्या महत्व है जानते है वास्तुविध डॉ सुमित्रा जी से
धर्म चर्चा:अर्धनारीश्वर भगवान शिव का वह रूप है जिसमें उन्होंने अपने शरीर का आधा हिस्सा माता पार्वती को समर्पित कर दिया, जिससे यह रूप आधा पुरुष और आधा स्त्री का प्रतीक बन गया। इस रूप का गहरा प्रतीकात्मक और दार्शनिक अर्थ है, जो सृष्टि के संतुलन और पुरुष-स्त्री के बीच एकता का प्रतिनिधित्व करता है।
अर्धनारीश्वर का महत्व:
पुरुष और प्रकृति का संतुलन: शिव को पुरुष (पुरुषार्थ) का प्रतीक और पार्वती को प्रकृति (प्रकृति शक्ति) का प्रतीक माना जाता है। अर्धनारीश्वर का रूप यह दर्शाता है कि सृष्टि का निर्माण पुरुष और प्रकृति दोनों के संयुक्त प्रयास से ही संभव है। यह दोनों के बीच अटूट संबंध और परस्पर निर्भरता का प्रतीक है।
पार्वती जी की खोज: कथा के अनुसार, शिवजी ने पार्वती जी को शरीर के बाहर के चार विकार (काम, क्रोध, लोभ, मोह) और शरीर के अंदर के दो विकार (भय और शोक) के बारे में बताया। शिवजी ने कहा कि शरीर में 108 ऐसी शक्तियां हैं जिन्हें नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन पार्वती जी इससे सहमत नहीं थीं। इसलिए, उन्होंने इन तथ्यों की खोज में निकलने का निर्णय लिया।
ग्लानी और अंततः समझ: अपनी खोज में सफल न होने के बाद, पार्वती जी वापस आ गईं और भगवान शिव के पास बैठकर अपनी असफलता की ग्लानी से प्रभावित हुईं। तब शिवजी ने अपनी करुणा और प्रेम के प्रतीकस्वरूप पार्वती जी को अपने शरीर का आधा हिस्सा प्रदान कर दिया। इस घटना के बाद, अर्धनारीश्वर रूप की उत्पत्ति हुई, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव और शक्ति (पार्वती) दोनों एक ही शक्ति के दो रूप हैं।
दार्शनिक दृष्टिकोण:
अर्धनारीश्वर का रूप संतुलन और समर्पण का प्रतीक है। शिव और पार्वती की एकता यह दर्शाती है कि सृष्टि में कोई भी शक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होती। पुरुष और प्रकृति, शिव और शक्ति, दोनों की शक्ति का समन्वय ही सृष्टि का निर्माण और पालन कर सकता है।
शिव और पार्वती के संवाद:
शिवजी का यह कथन कि शरीर के बाहर 4 विकार (काम, क्रोध, लोभ, मोह) और अंदर 2 विकार (भय और शोक) होते हैं, जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने का दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। ये विकार मनुष्य के जीवन में हमेशा रहते हैं और उन पर नियंत्रण पाना ही व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति का संकेत है।
आज के संदर्भ में अर्धनारीश्वर का अर्थ और महत्व यह है कि यह प्रतीक लैंगिक समानता, संतुलन, और समग्रता का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि पुरुष और स्त्री दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं और एक-दूसरे के पूरक हैं। अर्धनारीश्वर का स्वरूप इस बात पर ज़ोर देता है कि जीवन में संतुलन और परस्पर निर्भरता आवश्यक है—चाहे वह व्यक्तिगत, पारिवारिक, या सामाजिक जीवन हो।
यह प्रतीक समानता, सहयोग, और विविधता की स्वीकृति का संदेश देता है, जो आज के समय में लैंगिक पहचान, कार्य-जीवन संतुलन, और व्यक्तिगत विकास के मुद्दों पर अत्यधिक प्रासंगिक है।