राजनीति

राजा भैया आक्रामक ,आचार्य महामंडलेश्वर मौन – दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)

कुंडा की चर्चित सीट से विधायक, जनसत्तादल लोकतान्त्रिक दल के मुख्या और भदरी परिवार के कुँवर राजा रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया की हिंदुत्व के प्रति आक्रामकता निरंतर बढ़ रही है । राजा भैया ने प्रयागराज तीर्थ की धरती में आयोजित महाकुम्भ से उद्धघोष कर दिया है की इस जीवन काल में ५०० वर्ष पश्चात प्रभु श्री राम मंदिर का निर्माण होते हुए देखा है यदि हनुमान जी महाराज की कृपा हुई तो इसी जीवन में काशी ज्ञानवापी और मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि के मंदिर का भव्य निर्माण होते हुए भी देखेंगे। राजा भैया ने पाकिस्तानी और बंगलादेशी हिन्दुओ की चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार से भी सार्वजनिक रूप से मौखिक आग्रह किया है की वहां के जो हिन्दू महाकुम्भ का स्नान करने आना चाहते हैं उनकी सहायता की जाए। आश्चर्यजनक बात यह है की जिस विषय के प्रति सनातनी धर्माचार्यों के मन में जागरूकता होनी चाहिए उस विषय पर धर्माचार्य मौन हैं और राजनेता मुखर होकर उन विषयो को सार्वजनिक मंचो से उठा रहे हैं। जात पात मिटाने की बात हो ,आत्मरक्षा हेतु शस्त्र धारण की बात हो ,मां दुर्गा और हनुमान जी महाराज की तरह विधर्मियों के विनाश की बात हो ,बंगलादेशी हिन्दुओ की बात हो ,बाटोगे तो काटोगे की बात हो, राजा भैया इन विषयो पर खुले मन से संवाद कर रहे हैं । निश्चित ही आज कुम्भ को १५ दिन पूर्ण हो चुके हैं परन्तु किसी अखाड़े से ऐसा कोई निर्णय या प्रस्ताव अभी तक पारित नहीं हुए जिससे हिन्दुओ की रक्षार्थ कोई बात हो, १४४ वर्ष पश्चात आये इस महाकुम्भ का जल भी ज्ञानवापी में बाबा भोलेनाथ को नहीं चढ़ पाया, आखिर कब तक हिन्दू अखाड़े मौन रहेंगे । करोडो की भीड़ पुण्य अर्जित करने हेतु कुम्भ जा रही है पर क्या किसी ने सोचा है की जिस गंगा को बाबा विश्वनाथ ने अपनी जटाओं में धारण किया हूआ है उन्ही के शिवलिंग पर सैकड़ो वर्षो से कुम्भ का जल नहीं चढ़ा है । राजा भैया के उद्भोधन को सुनकर लगता है की देवता भी चाहते हैं की सनातनी समाज इन शब्दों का अनुपालन करें । नागा साधू जो अपना पिंडदान करके जीवन मोह को त्यागकर सनातन और शिव को समर्पित हो जाते हैं उन अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, नागा साधुओं को धर्म रक्षा हेतु संघर्ष का आदेश क्यों नहीं देते । क्या महाकुम्भ का अर्थ इतना ही रह गया की विभिन्न अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर अपनी प्रभुत्वता और लोकप्रियता में वृद्धि कर राजनितिक लाभ उठाने हेतु तत्पर रहे। महाकुम्भ से सनातन धर्म के सम्मान और रक्षार्थ हेतु बड़े निर्णय होना अति आवश्यक हैं अन्यथा भविष्य में जब सनातन समाज ही नहीं बचेगा तो आचार्य महामंडलेश्वर ही क्या करेंगे , अपने मठो में अपना प्रभुत्व दिखाएंगे या विधर्मियों के आदेशों का पालन करेंगे ,

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