ब्रज की भूमि से:देवता अदृश्य होकर कंस के महल में आये और कारागृह में प्रवेश किया और माता देवकी से ये प्रार्थना की, “हे माता देवकी आपकी कोख में पूर्ण पुरूषोत्तम भगवान विद्यमान हैं।”
भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं गीता जी में अपनी वाणी से कहा है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानम सृज्यामहम ।।
परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।।
जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूँ, अर्ताथ जन्म लेता हूँ। सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के विनाश और धर्म की पुन:स्थापना के लिये मैं विभिन्न युगों में (कालों) में अवतरित होता हूँ।
आज ऋषियों की इस महान भारत भूमि पर ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भगवान श्री कृष्ण के पावन जन्मोत्सव को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है।
ख़ुशी के इस महान उत्सव की पावन बेला पर भगवान से हम यही प्रर्थना करते हैं कि हे वसुदेव-देवकी नन्दन, हे नन्द-नन्दन, हे यशोदा नन्दन, हे गोपीयों के प्राण-वल्लभ, हे भक्तवत्सल हम आपके जन्मोत्सव की इस महान और पावन बेला पर आपको भेंट स्वरूप क्या अर्पण करें प्रभु। हे नाथ हमारे पास तो प्रेम के दो अश्रु-बिन्दु ही हैं आप उन्हें स्वीकार करना और हम सभी संसारी जीवों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखना।
भगवत प्रशाद शर्मा
ग्राम-खाम्बी (खम्बवन)ब्रजधाम