अध्यात्म:अपनी समस्या से स्वयं लड़ें
राजेश बैरागी(स्वतंत्र पत्रकार व लेखक)
सुग्रीव बहुत गिड़गिड़ाया,मूढ़ मति से बहुत से प्रलोभन भी दे डाले। परंतु राम टस से मस नहीं हुए।क्या श्रीराम सीधे जाकर राक्षसराज बाली का वध नहीं कर सकते थे? उनके संबंध में ऐसा विचार करना भी व्यर्थ है। भगवान श्रीराम के लिए इस मृत्युलोक में किए जाने वाला कोई भी कार्य असंभव की श्रेणी में नहीं आता है। फिर भी उन्होंने सुग्रीव को आगे जाकर अपने भाई बाली से युद्ध करने को कहा। सुग्रीव ने बहुतेरे बहाने बनाए, ढेर सारी सच्चाई बताई।वह बाली से असहनीय मार खाने के बाद ही ऋषिमूक पर्वत पर आकर रहने लगा था। मातंग ऋषि के श्रापवश बाली का उस पर्वत पर आना निषिद्ध था। सुग्रीव जानता था कि वह किसी प्रकार भी अपने अजेय भाई से लड़कर नहीं जीत सकता है। यदि वह जीत सकता तो अब तक इतने बरसों से इस प्रकार जंगल पहाड़ का कष्टपूर्ण जीवन क्यों बिता रहा होता। उसके बहुत ना नुकुर करने पर भी राम नहीं माने।राम ने ऐसा क्यों किया होगा? द्वंद्व युद्ध में बाली सुग्रीव के प्राण भी ले सकता था। ऐसी परिस्थिति भी उत्पन्न हो सकती थी कि सुग्रीव के प्राणों के लिए संकट खड़ा हो जाता और राम कुछ भी न कर पाते।राम अंतर्यामी थे। उनसे कुछ भी छिपा नहीं था न भूतो न भविष्यते। राम संसार को यह संदेश देना चाहते थे कि जिस किसी की भी समस्या है और समस्या चाहे जितनी बड़ी और भयानक है, उसे ही उसका सामना करना चाहिए। साथी, सहयोगी, सहायता करने वाले सभी लोग साथ होंगे परंतु अपने अस्तित्व की लड़ाई स्वयं लड़नी पड़ती है। आगे बढ़कर समस्या को जो ललकारे,वही योद्धा है और यही उसके पुरुषत्व का प्रमाण भी है।जो भी जीवधारी अपने अस्तित्व के संघर्ष के लिए दूसरे पर निर्भर है, निश्चित ही उसका अस्तित्व अतिशीघ्र नष्ट हो जाता है। किसी भी प्रकार राम को अपने निश्चय से पीछे हटता न देख सुग्रीव बाली से युद्ध करने चल पड़ा।उसे राम की मित्रता महंगी प्रतीत हो रही थी।वह बाली का वध, अपनी पत्नी को वापस प्राप्त करना और किष्किन्धा का शासक बनना, सब कुछ चाहता था परंतु अपने प्राण देकर नहीं। राम उसे सबकुछ दिलाने का आश्वासन दे रहे हैं परंतु पहले प्राणों की बाजी लगाने का मूल्य मांग रहे हैं। साधारण मानव के जीवन में जब कभी भी ऐसा अवसर आता है तो उसका न केवल स्वयं से अपितु सारी सृष्टि से विश्वास डगमगाने लगता है। सुग्रीव भी इसी मनोदशा के साथ आगे बढ़ रहा है। सामने खड़ा बाली उसे मानों यमराज ही लग रहा है।जो हो सो हो की विवश मनोवृत्ति के साथ वह बाली से भिड़ गया।वह बाली से भिड़ा नहीं है बल्कि उसने बाली के समक्ष स्वयं को निरीह चारे के तौर पर फेंक दिया है।बाली उसे हर प्रकार से मार रहा है,लात मुष्टिक से और कभी बालों से पकड़ कर खींच रहा है।मार खाते खाते सुग्रीव बेहाल हो गया है, उसके प्राणों का अंत होने ही वाला है कि एकदम से बाली पछाड़ खाकर गिर पड़ा है। सुग्रीव ने पलटकर देखा तो प्रभु श्रीराम अपने धनुष को संभालकर वापस कांधे पर टांग रहे हैं।समूची सृष्टि देख रही है कि अपना कर्म करने वाले की कभी हार नहीं होती है। प्रभु उसको पराजित नहीं होने देते हैं,