गौतमबुद्धनगर एफडीआरसी का चौथा स्थापना दिवस:पुलिस आयुक्त लक्ष्मी सिंह का सामाजिक सरोकार दर्शाता वक्तव्य

-राजेश बैरागी-
ग्रेटर नोएडा: पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को अपने कर्तव्य (ड्यूटी) निर्वहन में क्या केवल नियम कानून से संचालित एक रोबोट की भांति होना चाहिए या उन्हें भी मानवीय भावनाओं के साथ समाज कल्याण में योगदान देना चाहिए? मैं आज गौतमबुद्धनगर पुलिस कमिश्नर श्रीमती लक्ष्मी सिंह के इस वक्तव्य से अत्यधिक प्रभावित हुआ कि “महिलाओं को ध्यान देना चाहिए कि जितना त्याग, बलिदान और मेहनत आप कर रहे हो उतना ही पुरुष कर रहे है, अगर ये बात दोनों को समझ आ गई तो ऐसी समस्या नही आएगी। अगर परिवार टूटता है तो सभी पर असर पड़ता है,चाहे वो महिला हो या पुरुष। एफआईआर करना और नामजद लोगों को जेल भेजना पुलिस के लिए बहुत आसान काम है।” दरअसल श्रीमती लक्ष्मी सिंह आज कमिश्नरेट पुलिस और शारदा विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में ग्रेटर नोएडा स्थित नॉलेज पार्क थाने पर चलाए जा रहे परिवार विवाद समाधान क्लीनिक (एफडीआरसी) के चौथे स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं। यह क्लीनिक 2024 में आए 210 पारिवारिक विवाद के मामलों में से सफलता पूर्वक 161 मामलों में परिवार टूटने से बचा चुका है। अभी 49 मामलों में सुलह समझौते के प्रयास जारी हैं जबकि मात्र 11 मामलों में ही एफआईआर दर्ज करने की नौबत आई है जिनमें दोनों पक्ष किसी भी प्रकार झुकने को तैयार नहीं थे। इसे समाधान केन्द्र के स्थान पर क्लीनिक नाम देना भी खासा दिलचस्प है। क्लीनिक अर्थात उपचार केंद्र। फिर उपचार चाहे शारीरिक हो, मानसिक हो या पारिवारिक। मैं हमेशा यह अनुभव करता हूं कि बेहद कठोर छवि बनाए रखने के बावजूद पुलिस आयुक्त जैसे प्रमुख पदों पर नियुक्त अधिकारियों को समाज कल्याण के लिए मन वचन और कर्म से प्रयास करने चाहिएं। श्रीमती लक्ष्मी सिंह के वक्तव्य से मेरे प्रभावित होने का यही कारण है।