ग्रेटर नोएडा

संगोष्ठी के समन्वयक डॉ ज्ञानादित्य शाक्य ने संगोष्ठी की विषय वस्तु एवं उसके उद्देश्य से कराया अवगत

ग्रेटर नोएडा:गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन एवं सभ्यता संकाय और उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय ज्ञान परम्परा में पालि एवं प्राकृत का अवदान’ विषय पर गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो राणा प्रताप सिंह के संरक्षण एवं डॉ ज्ञानादित्य शाक्य के समन्वयन में एक-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय स्थित महात्मा ज्योतिबा फुले ध्यान केंद्र सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

सभी मंचासीन अतिथियों के अभिनंदन के बाद कुलपति प्रो सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में पालि एवं प्राकृत भाषा की समृद्ध विरासत की महत्ता एवं उसके संरक्षण की आवश्यकता की बात की।

दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग के अध्यक्ष प्रो. इंद्र नारायण सिंह ने अपने बीज वक्तव्य में भारतीय ज्ञान परम्परा में पालि एवं प्राकृत भाषा के योगदान की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

संगोष्ठी के प्रथम सत्र के अध्यक्षीय उद्बबोधन में प्रो विजय कुमार जैन ने ‘प्राकृत साहित्य में पुरुषार्थ चतुष्टय’ विषय पर अपने विचार रखे। जवाहर लाल विश्वविद्यालय के प्रो सी. उपेंद्र राव ने पालि में भारतीय ज्ञान परम्परा विषय पर अपना व्याख्यान दिया। प्रो डॉ राका जैन ने प्राकृत साहित्य में ‘ज्ञान-ज्ञाता-ज्ञेय विषयक सूक्तियां एवं लोकमंगल भावना’ विषय पर अपने विचार रखते हुए वर्तमान के मंगल बनाने की सोच जागृत करने की बात की।

उदघाटन सत्र का सफल संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ शाक्य द्वारा किया गया। प्रथम सत्र का संचालन डॉ शाक्य और धन्यवाद ज्ञापन डॉ पासवान द्वारा किया गया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ प्रियदर्शिनी मित्रा एवं डॉ पासवान द्वारा की गई। सत्र का संचालन डॉ मनीष मेश्राम एवं धन्यवाद ज्ञापन श्री विक्रम सिंह यादव द्वारा किया गया।

समापन सत्र में डॉ मित्रा ने संगोष्ठी विवरण प्रस्तुत किया। सत्र में अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में विभागाध्यक्ष डॉ शिवासाई ने बौद्ध एवं जैन साहित्य के महत्व पर प्रकाश डाला। सत्र का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ शाक्य द्वारा किया गया।

संगोष्ठी के अंत में धन्यवाद ज्ञापन देते हुए डॉ शाक्य ने उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के निदेशक श्री विनय श्रीवास्तव एवं सर्वेक्षक श्री महेंद्र कुमार पाठक का वित्तीय सहयोग एवं मार्गदर्शन के लिए विशेष रूप से आभार व्यक्त किया। डॉ शाक्य ने प्रशासनिक सहयोग हेतु कुलसचिव डॉ विश्वास त्रिपाठी एवं अधिष्ठाता प्रो एन. पी. मलकानिया के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त की।

विभागाध्यक्ष डॉ चिंताला वेंकटा शिवसाई ने स्वागत भाषण दिया। प्रो श्वेता आनंद ने संगोष्ठी के विषय की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए संगोष्ठी की सफलता की शुभकामनाएं दीं। म्यांमार के बौद्ध भिक्षु आनंद ने म्यांमार में पालि साहित्य की प्रासंगिकता पर अपने विचार रखते हुए आशीर्वचन प्रदान किया।

संगोष्ठी का शुभारंभ सभी अतिथियों एवं संकाय सदस्यों द्वारा भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्पण से हुआ। तत्पश्चात बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणियों द्वारा बुद्ध वंदना गायन ने सभागार को बुद्धमय कर दिया।

संगोष्ठी में देश-विदेश से आए हुए कई शोधार्थियों एवं शिक्षकों ने शोध पत्रों का वाचन किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ मनीष मेश्राम, भिक्षु आनंद, न्यूगेन थी बिच थी, भंते बन्नाताजोती, कन्हैया, अजय, सचिन, राजकुमार, राकेश, संदीप ढाका, विकास, निशा भारती, भंते प्रियदर्शी, रेखा एवं विभाग के विद्यार्थियों का विशेष योगदान रहा। संगोष्ठी में प्रो पंकजदीप, डॉ एम ए अंसारी, डॉ सतीश चंद्रा, डॉ प्रदीप यादव, डॉ संगीता वाधवा, डॉ दिवाकर गरवा, डॉ सिद्धारामू , डॉ तन्वी वत्स, डॉ दीप्ति गोयल, डॉ ओबैदुल गफ्फार, डॉ प्रियंका सिंह, डॉ विक्रम करुणा, प्रदीप सिंह, रवि किशन सहित कई शिक्षकों, विद्वानों एवं कर्मचारियों ने भाग लिया।

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