“जीबीयू में सिद्धम् कैलीग्राफी: रूप-ब्रह्म की अभिव्यक्ति” जो भारत और कोरिया के सांस्कृतिक संबंधों का आध्यात्मिक आलोक पर प्रदर्शनी”

ग्रेटर नोएडा:गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन एवं सभ्यता संकाय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (ICCS) और तत्त्वम् के सहयोग से एक अद्वितीय तीन दिवसीय प्रदर्शनी “सिद्धम् कैलीग्राफी: रूप-ब्रह्म की अभिव्यक्ति”* का आयोजन 14 से 16 अप्रैल 2025 के मध्य ज्योतिबा फुले ध्यान केंद्र, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय परिसर में किया जा रहा है।
इस प्रदर्शनी के क्यूरेटर और कलाकार हैं भिक्षु दोवूंग, जो कोरिया के एक प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं। भिक्षु दोवूंग संस्कृत, पाली, हिंदी, कोरियाई और मंदारिन जैसी भाषाओं तथा सिद्धम्, देवनागरी, मंदारिन और कोरियन लिपियों के विशेषज्ञ हैं। उनकी कैलीग्राफी कोरिया और भारत दोनों में अत्यंत प्रसिद्ध है और यह भारत-कोरिया के 2000 वर्षों पुराने सांस्कृतिक संबंधों का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करती है।
प्रदर्शनी के प्रमुख आकर्षण:भिक्षु दोवूंग द्वारा तैयार की गई 120 थांका चित्रकलाएँ, जिनमें सिद्धम् और देवनागरी लिपियों में लिखी गई पवित्र पंक्तियाँ शामिल हैं।
सिद्धम् लिपि की ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और सौंदर्यात्मक प्रस्तुति — जो केवल लेखन नहीं, अपितु एक रूप-ब्रह्म की अभिव्यक्ति है।
कार्यशालाएँ और संवाद सत्र, जहाँ दर्शक भिक्षु दोवूंग और अन्य विशेषज्ञों से सीधे संवाद कर सिद्धम् के रहस्यों को समझ सकेंगे।
सिद्धम् लिपि: आध्यात्मिक शक्ति का वाहक सिद्धम्, ब्राह्मी लिपि का एक परिष्कृत रूप, 6वीं से 8वीं शताब्दी ईस्वी में चीन, कोरिया और जापान में अत्यंत महत्वपूर्ण बन गई थी। मंत्रयान परंपरा के उदय के साथ यह लिपि बौद्ध धर्म में धारणियों, मंत्रों और बीजाक्षरों को लिखने का प्रमुख माध्यम बनी।
महान तांत्रिक आचार्य अमोघवज्र ने इस लिपि के आध्यात्मिक प्रभाव पर बल देते हुए कहा कि सिद्धम् में लिखे गए मंत्रों की शक्ति किसी भी अन्य लिपि की तुलना में कहीं अधिक प्रभावशाली होती है। सुभाकरसिंह, वज्रबोधि और अमोघवज्र जैसे भारतीय आचार्यों ने सिद्धम् को पूर्वी एशिया में प्रचारित किया, जहाँ आज भी यह बौद्ध अनुष्ठानों में प्रयुक्त होती है।
चीन के प्रसिद्ध भिक्षु ई-चिंग ने अपनी यात्रा वृतांत Nan-hai-chi-kuei-chuan में सिद्धम् के महत्व का वर्णन करते हुए उल्लेख किया कि भारत में विद्यार्थियों की संस्कृत शिक्षा हिस-तान या सिद्धम् लेखन पट्टिकाओं से शुरू होती थी। उन पर लिखा होता था – “सिद्धम्” या “सिद्धिरस्तु” — यानी “सफलता हो!” यह दर्शाता है कि सिद्धम् लिपि न केवल भाषा का माध्यम थी, बल्कि शुभता और सिद्धि की प्रतीक थी।
सिद्धम् को राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक और यह प्रदर्शिनी भारत-कोरिया सांस्कृतिक संवाद पर आधारित है।
यह प्रदर्शनी भारत और कोरिया के बीच दो हजार वर्षों पुराने सभ्यतागत संबंधों को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत करती है। भिक्षु दोवूंग की कला भारत की प्राचीन परंपराओं और कोरियाई श्रद्धा का संगम है, जो दोनों देशों के बीच आध्यात्मिक, भाषिक और सांस्कृतिक सेतु का कार्य करती है।