विचार

सरकारी तंत्र में नौकरशाही:कर्मचारियों की मनमानी के आगे नतमस्तक अधिकारी वर्ग

राजेश बैरागी( स्वतंत्र पत्रकार व लेखक)

नौकरशाही के दो महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक अधिकारी वर्ग क्या दूसरे हिस्से (कर्मचारियों)के समक्ष बौना साबित होने लगा है? इस अटपटे प्रश्न को हल करने के लिए जिला गौतमबुद्धनगर के मुख्यालय (कलेक्ट्रेट) चलना उचित होगा। बीते मंगलवार को जिला गौतमबुद्धनगर के कलेक्ट्रेट में एक उपजिलाधिकारी की खुली अदालत में एक अधिवक्ता ने एक महिला लेखपाल पर रिश्वतखोरी का आरोप लगाते हुए अदालत को अवगत कराया कि उक्त लेखपाल गलत और निर्धारित बिंदु से इतर रिपोर्ट दे रही है। उपजिलाधिकारी को इस प्रकार के आरोप पर क्या करना चाहिए था? मेरा मानना है कि उन्हें एक अधिकारी और एक अदालत के तौर पर अधिवक्ता से अपने आरोप को शपथपत्र के साथ लिखित रूप में प्रस्तुत करने के लिए कहना चाहिए था। यदि अधिवक्ता ऐसा नहीं करता तो उसके आरोप को मिथ्या मान लिया जाना चाहिए था और यदि वह सशपथ अपने आरोप को लिखित रूप में देता तो लेखपाल के भ्रष्ट आचरण की जांच कराई जाती। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। अधिकारी ने यह कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली कि लेखपाल से सही रिपोर्ट देने के लिए कहा जाएगा। क्या अधिकारी अपने मातहत कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने से डरते या बचते हैं? कुछ समय पहले नोएडा प्राधिकरण में एक सहायक अभियंता के कई बार कहने के बावजूद एक कनिष्ठ अभियंता एक मामले में रिपोर्ट लगाने को तैयार नहीं हुआ। उसने उस मामले को खारिज भी नहीं किया था। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में एक मध्यम दर्जे के अधिकारी महोदय अपने मातहतों के असहयोग के चलते आमतौर पर भन्नाते रहते हैं।मैं आमतौर पर जिले की तहसीलों, नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों में अधिकारियों को मातहत कर्मचारियों से आदेश का त्वरित पालन न करवा पाने के लिए निराशा की सीमा तक विवश पाता हूं।क्या सदियों से आम नागरिकों की सुविधा के लिए बना सरकारी तंत्र दरक रहा है? प्रत्यक्ष रूप से ऐसा नहीं दिखाई देता है। परंतु यह सच है कि अधिकारियों और कर्मचारियों में धन लोभ के चलते प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है। इस प्रतिस्पर्धा का दुष्परिणाम है कि कर्मचारी अधिकारी के आदेशों को न केवल हल्के में ले रहे हैं बल्कि उनके हर आदेश को अपने लाभ के दृष्टिकोण से देखते हैं और अंजाम देते हैं। मातहत अधिकारियों और कर्मचारियों की आवश्यकता के मुकाबले कम संख्या भी उनकी मनमानी को बढ़ावा दे रही है। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की हताशा का अंदाजा इन शब्दों से लगाया जा सकता है – मैं जानता हूं कि फलां अधिकारी गड़बड़ी कर रहा है परंतु यदि उसे काम से हटा दिया जाए या निलंबित कर दिया जाए तो मेरे पास उसके विकल्प के तौर पर कोई दूसरा अधिकारी नहीं है,

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