विचार

मजहबी दंगे का पारितोष, इस्लामिक मानसिकता – दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)

विचार: इस्लाम में उन लोगो को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है जो गैर इस्लामिक समाज के प्रति आक्रामक रहते हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इस्लामिक समाज उन लोगो को अपना आका, अपना सरपरस्त मानता है जो अन्य समाज के प्रति अमानवीयता और क्रूरता करते हैं।ताहिर हुसैन जिन्हे दिल्ली दंगो में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के आरोप में दिल्‍ली पुलिस ने मुख्य आरोपी बनाया था ओवैसी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव हेतु उसी ताहिर हुसैन को मुस्तफाबाद से प्रत्याशी घोषित कर दिया यदि इस्लाम में मानवता है तो क्या मुस्तफाबाद की जनता ऐसे व्यक्ति को नकार सकती है जो दंगों का आरोपी है शायद नहीं । आज हिन्दू समाज बांग्लादेश को रो रहा है लेकिन भारत की बदलती व्यवस्था पर चिंता नहीं है इस्लामिक कट्टरवाद लोकतांत्रिक तरीके से सशक्त होकर शरीयत को स्थापित करने हेतु निरंतर प्रयासरत है । जिन लोगों को सभ्य समाज में जगह नहीं मिलनी चाहिए उन्हें इस्लामिक समाज अपना नेता चुनता है। हिन्दू समाज तो उन सनातन प्रहरियों से भी दूरी बना लेता है जो धर्म की,पुरुषार्थ की, संघर्ष की बात करते हैं और इस्लाम उन लोगों को सर पर बैठा लेता है जो हिन्दू समाज का सर तन से जुदा करने की योजना को क्रियान्वित करते हैं बस यही अंतर है इस्लामिक समाज के मजहबी समर्पण और हिन्दू समाज की निरंकुशता में।

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!