घर में बेटीहै और बाहर जानवर, शस्त्र आवेदन हेतु क्या है पर्याप्त कारण – दिव्य अग्रवाल
विश्व भर में इस्लामिक मजहबी आतंक के पश्चात भारत में काफिर के नाम पर जब हिन्दू बेटियों के साथ दुराचार, शरीर के टुकड़े आदि किए जाते हैं तो सभ्य परिवार यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं की परिवारों की सुरक्षा हो कैसे। चाहे कश्मीर रहा हो या दिल्ली दंगे या अब बंगलादेश के साथ साथ पश्चिम बंगाल की स्थिति ज्यादातर स्थानों पर देखा गया है की मजहबी भीड़ ने हिन्दू परिवारों के घरो में जाकर महिलाओं से सामूहिक दुराचार किया और पुरुषो के साथ उनकी भी निर्मम हत्या कर दी।
अब घर में बेटी है और बाहर जानवर इसलिए सभ्य परिवार सोचते हैं की शस्त्र लाइसेंस बनवाना आवश्यक है। लेकिन जब अधिकारी पूछते हैं की एक सभ्य परिवार को शस्त्र की आवश्यकता क्या है तो उन्हें कैसे समझाया जाय की जिस बेटी को अनेको संघर्ष कर घर में बड़ा किया है उसको नोचने के लिए बाहर भेड़िये घात लगाए बैठे हैं । कैसे उस पिता की पीड़ा समझायी जाए ,जो स्वयं काम के लिए घर से बाहर तो निकल जाता है पर उसको चिंता रहती है की यदि मजहबी लोगो की भीड़ उन्मादी नारे लगाते हुई उनके मोहल्ले और घर में प्रवेश कर गयी तो उनकी बेटियों की रक्षा होगी कैसे। अधिकारियों को यह कैसे समझाया जाय की जिन बच्चो की शिक्षा,स्वास्थ्य, मकान आदि की व्यवस्था करने के संघर्ष में जो पिता उन्हें सोता हुआ छोड़कर घर से निलकता है और जब आता है तो सोता हुआ ही पाता है यदि उनकी सुरक्षा का प्रबंध नहीं कर पाया तोस्वयं को जीवन भर माफ़ करेगाकैसे।
जिस बाप को पता है कि घर में बेटी है और बाहर जानवर, उसको पता है की उसके घर की नित्य सुरक्षा के लिए कोई पुलिसकर्मी पहरा नहीं देगा, जबउसका परिवारघर से बाहर जाएगा तो कोई पायलट काफिला उनकी सुरक्षा करने के लिए साथ नहीं होगा, उसको पता है की उसके बच्चे जब स्कूल जाएंगे तो कोई गनर उनके साथ नहीं होगा। इसलिए एक सभ्य और शिक्षित परिवार जो अपने व्यापार और अपनी निजी नौकरी से अर्जित आय पर टैक्स भरकर राष्ट्र विकास में योगदान देता है उसको योग्यता अनुसार शस्त्र लाइसेंस मिलना चाहिए क्योंकि घर में बेटी है और बाहर जानवर,