मंगल पांडे का पुरुषार्थ क्यों नहीं अपनाया गया – दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)
मंगल पांडे सनातन धर्म की सर्वोच्च व्यवस्था का अनुसरण करने वाले धर्म प्रहरी ब्राह्मण समाज से आते थे जो जनेऊधारी के साथ साथ शस्त्र धारक भी थे । जिन्होंने धर्म के साथ छल होने पर शस्त्र का उपयोग कर विधर्मी की छाती में उसी के बारूद को उतार दिया था। उन्हें जब पता चला की कारतूस के ऊपर जीव की खाल का उपयोग किया जा रहा है तत्काल ही उन्होंने धर्म रक्षा हेतु युद्ध का बिगुल फूँक दिया परन्तु समाज को मंगल पांडे के पुरुषार्थ की शिक्षा न देकर गांधी जी की तुष्टिकरण वाली अहिंसा की शिक्षा दी गयी । गांधी जी और नेहरू जी के विचारों ने समाज को मंगल पांडे के पुरुषार्थ का अनुसरण ही नहीं करने दिया। यदि समाज मंगल पांडे के विचारो का अनुसरण करता तो खिलाफत आंदोलन में हिन्दुओ का नरसंघार नही होता ,न ही कश्मीरी हिन्दुओ का पलायन होता ,न ही नाथूराम गोडसे का बदला लेने के लिए असंख्य हिन्दुओ की निर्मम हत्या होती और न ही होता इस्लामिक आतंक जो देश का मजहबी बंटवारा होने के पश्चात भी भारत में अपनी जड़े निरंतर मजबूत कर रहा है। चाहे भगवान् परशुराम हो या वीर योद्धा मंगल पांडे इन्होने सदैव ही धर्म और मानवता की रक्षा हेतु शौर्यता , वीरता और पुरुषार्थ करने की शिक्षा दी परन्तु यह इस देश का दुर्भाग्य की यह शिक्षा अग्रिम पीड़ी में उस वेग के साथ प्रवाहित न हो सकी जिस वेग के साथ होनी चाहिए थी ,