भारत में यदि शरीयत होती तो क्या मौलाना शब्दों तक सीमित होता – दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)

सभ्य रूप से साडी धारण करने वाली प्रतिष्ठित महिला तक को नंगी जैसे शब्दों से सम्बोधन करने वाले मौलाना की गलती बताने वाले उसकी मजहबी शिक्षा की गलती क्यों नहीं ढूंढ रहे । मौलाना के अभद्र व्यवहार और आपत्तिजनक विचार की निर्माता कौन सी मजहबी पुस्तक है विचार करना चाहिए। हिन्दू समाज चिल्ला चिल्लाकर कह रहा है की मौलाना के शब्द नारी सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं लेकिन इस्लामिक समाज तो मौलाना का खैरमकदम/इस्तकबाल/प्रसंशा कर रहा है की मौलाना मजहब की बात कहने से डरे नहीं चाहे वो उस राजनितिक पार्टी की सांसद ही क्यों न हो जो पार्टी इस्लामिक समाज की सबसे बड़ी हितैषी होने का दम भरती है । आप विचार कीजिए जब मजहबी शिक्षा किसी ताकतवर महिला तक को अपमानित कर सकती है तो सामान्य हिन्दू समाज क्या स्थिति होगी । चाहे कोई भी राजनीतिक दल हो लेकिन उसको समझना होगा की कट्टरवादी इस्लामिक शिक्षा में गैर इस्लामिक समाज का दोहन करना ही मूल उद्देश्य है । किसी भी इस्लामिक जानकार ने मौलाना का विरोध नहीं किया तो यह तो हिन्दू समाज को सोचना ही चाहिए की उनकी घर की महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं।
प्रतिदिन लव जिहाद , धर्मांतरण के घटनाक्रम उजागर हो रहे हैं यह उसी मजहबी शिक्षा का तो प्रमाण हैं । यदि भारत में शरीयत लागू हो जाय तो इस प्रकार के मौलाना केवल अभद्र शब्दों तक नहीं रुकेंगे अपितु इस्लामिक समाज को तहरुष जैसे भयावह खेल को खेलने को प्रोत्साहित करेंगे जिसमें यदि महिला का एक अंग भी दिख जाय तो उसे शरीयत की खिलाफत मानकर भरे बाजार मजहबी भीड़ निर्वस्त्र कर उसके शरीर को तब तक पीड़ा देती है जब तक वो मर नहीं जाती ।