राष्ट्र निर्माता रतन टाटा: एक विनम्र श्रद्धांजलि
राष्ट्र निर्माताओं को किस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है? बहुत वर्ष पहले मेरे एक वरिष्ठ पत्रकार साथी ने निजी बातचीत में टाटा,बिड़ला, डालमिया के लिए बेहद सम्मान प्रकट करते हुए उन्हें राष्ट्र निर्माता करार दिया था। मैंने उनसे अंबानी का जिक्र किया तो मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे मैंने कोई कड़वी बात कह दी हो। एक समय हमारी पीढ़ी केवल उपरोक्त तीनों शीर्ष उद्योगपतियों को ही जानती मानती रही है। आपसी बातचीत में भी एक दूसरे की औकात बताने के लिए यही कहा जाता है-तू कोई टाटा बिड़ला है।’ अर्थात टाटा बिड़ला होना कोई सामान्य बात नहीं है। इनमें भी टाटा होना असाधारण है। रतन टाटा होना और भी असाधारण है। सबसे अल्पसंख्यक पारसी समुदाय का अमूमन हर व्यक्ति अपनी विशेष उपलब्धियों से जाना जाता है। उनमें से एक रतन टाटा लेजेंड थे। भारत जैसे विशाल देश के एक अरब से अधिक नागरिकों के लिए वे एक आदर्श थे तो दुनिया ने उनका लौहत्व स्वीकार किया। बीती रात 86 वर्ष के शानदार जीवन से आंख मूंद लेने वाले रतन टाटा को कुंवारा शहजादा भी कहा जाता था। क्या उन्हें अपने योग्य कोई जीवनसाथी नहीं मिली या देश-दुनिया के दुलारे इस उद्योग रत्न को किसी लड़की ने पसंद नहीं किया या उन्हें अपने कामकाज से शादी जैसे काम की फुर्सत ही नहीं मिली।इन सभी प्रश्नों का एक उत्तर यह भी है कि पारसी लोगों को शादी और बच्चे पैदा करने जैसे कामों में खास रुचि नहीं है। इसीलिए उनकी संख्या बढ़ने के स्थान पर घट रही है। मैंने हाल ही में फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की थी। मुझे नहीं लगता कि मिथुन उस पुरस्कार के योग्य हैं। मुझे नहीं लगता कि रतन टाटा जैसी शख्सियत को सम्मानित करने की योग्यता किसी पुरस्कार में है।
राजेश बैरागी( स्वतंत्र पत्रकार)