मिट्टी की प्रतिमाएं अपनाएं, पर्यावरण संरक्षित विश्वकर्मा नवरात्र दीपावली आदि पर्व मनाए -घनश्याम पाल
बिलासपुर :विश्वकर्मा नवरात्र दीपावली आदि पर्व पर पूजी जाने वाले विश्वकर्मा भगवान दुर्गा मां लक्ष्मी- गणेश आदि प्रतिमाएं अवश्य खरीदते हैं। जिसके प्रति लोगों में काफी उत्साह देखा जाता है। दरअसल, बढ़ते प्रदूषण व भारत चीन के माहौल को देखते हुए इसबार चीनी सामग्रियों से देशवासियों का मन हट गया है। इसके मद्देनजर मिट्टी मूर्ति कलाकार काफी उत्साहित मिट्टी सजावटी सामान सड़क किनारे नवरात्र दीपावाली आदि पर्व मनाने मिट्टी गाय गोबर पीओपी स्वदेशी सामग्रियों पर जोर दिया जा रहा है। क्योंकि पीओपी से बनी मूर्तियां पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाती हैं। इसी को देखते हुए बाजार में भी मिट्टी गोबर से बनीं विश्वकर्मा भगवान दुर्गा मां लक्ष्मी-गणेश आदि मूर्तियां मूर्तिकारों द्वारा बनाई जा रही हैं। तरह-तरह की मुद्राओं में बनी मूर्तियां लोगों को काफी आकर्षित कर रही हैं। ऐसे में इस बार मिट्टी से बनी लक्ष्मी-गणेश आदि मूर्तियों की खरीदारी के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी प्रचारित हो रहा है। दुकानदारों व खरीदारों ने बताया कि दीपावली पर बाजार में इस बार मिट्टी की मूर्तियों की काफी मांग है। चीनी व प्लास्टर ऑफ पेरिस की छोटी-बड़ी मूर्तियों से पटा रहने वाला बाजार मिट्टी की मूर्तियों से महकेगा।
विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां से सजेगा बाजार गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों में लोगों की पहली पसंद शांत स्वभाव पद्मासन मुद्रा की मूर्तियां में कदंब पर विराजमान लक्ष्मी-गणेश, सिंहासन पर बैठे गणेशजी, सेठ रूप में गणपति, उल्लू पर बैठीं मां लक्ष्मी, हाथी व चूहे के साथ गणपति, गजलक्ष्मी, बाएं हाथ व दाए हाथ सूंड वाले गणेशजी हैं। पांच इंच से लेकर 12 से 16 इंच के साथ साथ चार से छह फीट की मूर्तियां बनी अधबनी आकर्षित कर रही हैं। स्टोन, कुंदन से सजी मूर्तियां दीपावली पर पूजन के लिए शांत मुद्रा में बैठे लक्ष्मी-गणेश के अलावा रामदरबार, हनुमान जी, हनुमान जी, सरस्वती की मूर्तियां तैयार की जा रही है। पर्यावरण सुरक्षा मिट्टी मूर्तियों के अलावा लोग हाथ की कारीगरी से सजी मूर्तियां ज्यादा लेते हैं। मूर्तियों को रंग, पॉलिश के साथ वास्तविक कपड़े पहनाए जाते हैं, स्टोन, कुंदन, ज्वेलरी से मूर्ति का शृंगार होता है।
“बुलंदशहर हापुड़ अलीगढ़ गाजियाबाद नोएडा दिल्ली आदि बाजारों में तरह-तरह की मूर्तियों के पेशगी पुर्व में व्यापारियों द्वारा जमा करवाई गई हैं, लेकिन इस बार ज्यादातर ग्राहकों द्वारा पर्यावरण संरक्षण के तहत मूर्तियों की मांग की जा रही है, जो कि कारीगरी और आकार के मुताबिक 50 रुपये से लेकर 15000 रुपये तक के आर्डर मिले हुए हैं। जिसके अनुरूप मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है।
रामचन्द्र मूर्तिकार“पंचायतन, गिरधरपुर, रौनी गांव स्थित कासना खेरली मुख्य मार्ग किनारे मूर्तियों का दुकान लगाने वाले मिट्टी से बनी मूर्तियाें को इस बार बहुत सलीके से सजाया गया है। प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की छोटी-बड़ी मूर्तियों से पटा रहने वाला बाजार इस बार कस्बे, गांव व सेक्टर में मिट्टी व गोबर की मूर्तियों की मांग ज्यादा है।
नरपत राठौर मूर्तिकार“इसबार पर्यावरण संरक्षण को लेकर लोगों में जागरूकता आई है। जागरूकता अभियान के माध्यम से दीपावली पर्व के मद्देनजर महिलाओं को जागरूक करने का प्रयास है कि मिट्टी की मूर्तियाँ दिए आदि स्थानीय शिल्पकार से खरीदे।
वंदना भारद्वाज “चीन के हरकत से भारतीय लोगों में चीन निर्मित सामग्रियों से नफरत होने लगी है। स्वदेशी सामग्रियों से पर्व मनाने के लिए जागरूकता सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को समझाने का प्रयास किया जा रहा है। प्रदूषण रहित दीपावली मनाया जाए।
वन्दना देवी गाय के गोबर में है पॉजिटिव एनर्जी : डाक्टर शैलेश रौसा गौ माता के दूध, गोबर एवं मूत्र सभी में सकारात्मक ऊर्जा है, जहां पर गौ माता उस स्थान पर भी सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा रहती है। सबसे शुद्ध एवं पवित्र प्रेम गौ माता से मिलता है। ऐसे में सम्पूर्ण पर्व पोजीटिव एनर्जी किए जाने की बात डाक्टर शैलेश रौसा ने कही है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश के विभिन्न जिलों में रहने वाले गौ सेवक गौ माता के ताजा गोबर मुहैया कराएं। इसी गोबर को सूखाकर पाउडर बनाया जाता है। इसके लिए किसी मशीन का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह पूरी तरह से प्राकृतिक रूप में तैयार किया जाता है। इससे बनने वाली मूर्तियां घर-परिवार व पर्यावरण संरक्षण के लिए लाभदायक होती है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए मिट्टी गोबर से बनी मूर्तियां तैयार स्वदेशी अपनाए : संजय नवादा
पर्यावरण संरक्षण समिति अध्यक्ष संजय नवादा ने बताया देश समाज हित के लिए मिट्टी गोबर से बनी मूर्तियां मूर्तिकारों द्वारा तैयार किए जा रहे हैं। स्वदेशी सामग्रियों को अपनाएं जिससे गरीब मजदूर कामगारों मूर्तिकारों को आर्थिक मदद के साथ साथ पर्यावरण संरक्षण में सहभागिता सुनिश्चित किया जा सकता है।