भदरी परिवार का संघर्ष अविस्मरणीय – दिव्य अग्रवाल

महाराज दशरथ और प्रभु श्री राम आपस में ज्यादा समय व्यतीत नहीं कर पाए , समय का चक्र ऐसा रहा की पिता और पुत्र दोनों को अलग होना पड़ा अंत समय तक दोनों का आपसी मिलन नहीं हो पाया लेकिन इसके पश्चात भी दोनों ने ही सनातन धर्म और समाज के प्रति अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया । धर्म और समाज सेवा के कारण आज भी दोनों का वाचन अधिकतर घरो में होता है इसी प्रकार भारत में अनेको परिवार हुए,धर्म प्रहरी हुए जिनका जीवन राष्ट्र,धर्म और समाज को समर्पित रहा । छोटे छोटे गाँवों में , मोहल्लो में ऐसे अनेको महान नाम आज भी लोगो की स्मृतियों में हैं जिनमें कईं साधारण और कईं राज परिवार हैं । उन्ही में से एक भदरी राज परिवार है अपने सनातनी कर्मो से महाराज उदय प्रताप सिंह ने भदरी परिवार को समूचे भारत में प्रसिद्ध किया तो उनके पुत्र राजा रघुराज प्रताप सिंह ने अपने पुरुषार्थ से कुंडा का नाम विश्व में लोकप्रिय बना दिया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हो,विश्व हिन्दू परिषद् हो या अन्य कोई धार्मिक संस्था जिनका उत्पीड़न कांग्रेस शासन काल में चर्म पर था तो भदरी परिवार उन मुख्य परिवारों में से एक था जो हिंदूवादी संगठनों की हर प्रकार से मदद कर रहे थे परन्तु आज सत्ता और राजनीति की चमक ने ऐसे परिवारों को विस्मृत कर दिया जबकि ऐसा हर परिवार चाहे वो आम हो या ख़ास प्रत्येक सनातनी के लिए पूजनीय है अभिनंदनीय है । मंदिर में विराजे भगवान् के कारण मंदिर की सीढ़ी भी पूजनीय है उसी प्रकार सनातनी संघर्षो के कारण ऐसे परिवारों का एक एक सदस्य सम्माननीय है । यदि आज भदरी नरेश द्वारा आयोजित भंडारा प्रतिबंधित है तो उसका कारण चेतनाविहीन हिन्दुओ की जनसँख्या है अन्यथा क्या कारण है की मोहर्रम का बहाना देकर भंडारे को बंद करवा दिया जाए क्यूंकि प्रशासन को भीड़ तंत्र के आक्रोश को नियत्रित करना पड़ता है यदि भैंसो का झुण्ड आ जाए तो शेर को भी पीछे हटना पड़ता है । मजहबी लोग अपनी जागरूक संख्या के बल पर वो कर जाते हैं जिसकी पीड़ा प्रत्येक सभ्य व्यक्ति को होनी चाहिए , मानस में जागृति होनी चाहिए अन्यथा संघर्ष करने वाले लोग तो एक दिन ईश्वर की शरणागति प्राप्त करेंगे ही पर सनातनी वंश बेल की सद्गति मुश्किल होगी ।