कथा वाचक श्री रवि कृष्ण भारद्वाज जी से ध्रुव की जीवंत मनमोहक कथा सुन भक्ति में लीन हुए भक्त

दनकौर: कस्बे के मोहल्ला प्रेमपुरी में स्थित प्राचीन देवी मंदिर के महंत व प्रसिद्ध कथा वाचक श्री रवि कृष्ण भारद्वाज जी ने अपने मंदिर पर चलने वाली साप्ताहिक भागवत कथा का शुप्रारंभ कस्बे के मुख्य मार्गो से निकली गई सैकड़ो भक्तों के साथ भव्य कलश यात्रा के उपरांत कपिल देव भगवान द्वारा ध्रुव की सुनाई गई कथा का मोहक जीवंत वर्णन कर शु:प्रारंभ इस प्रकार किया,
मृत्योर्मूर्ध्नि पदं दत्वा आरुरोहाद्भुत गृहम् ।
आकाशमें दुन्दुभियाँ बजने लगीं और देवतागण पुष्पवृष्टि करने लगे। गन्धर्व गाने लगे। चारों ओर आनन्द छा गया। मागमं जाते हुए ध्रुवने अपनी माता सुनीतिका स्मरण किया। पार्षदोंने आगे-आगे विमानपर जाती हुई सुनीतिका दर्शन उन्हें कराया। इसमे ध्रुवको महान् हर्ष हुआ। माग्र्गमं देवतागण ध्रुवकी प्रशंसा करते थे। इस तरह ध्रुव सत्र ग्रहोंको देखते-देखते ध्रुवलोक पहुँचे। वहाँ तीनों लोकोंमें चूड़ामणिके समान प्रकाशित हुए। देवर्षि नारद अपने भक्तकी यह अदभुत महिमा देखकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रचेताओंके यज्ञमें वीणापर ध्रुवकी कीर्तिका बखान किया। नारदने कहा-तपस्या द्वारा ध्रुवने जो गति प्राप्त की उसे ज्ञानी भी नहीं प्राप्त कर सकते, साधारण राजाओंकी तो बात ही क्या है ? उसने पाँच ही वर्षकी अवस्थामें मेरे उपदेशसे अजेय भगवान्को वशमें कर उनका दिव्य पद प्राप्त कर लिया। मैत्रेयजी बोले- हे विदुर ! जो तुमने प्रश्न किया था तदनुसार मैने यह मङ्गलमय ध्रुवचरित्र तुम्हें सुनाया। यह चरित्र मनुष्योंको धन, आयु यश तथा स्वर्ग देनेवाला है। जो मनुष्य श्रद्धासे पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, श्रवण व्यतीपात, संक्रान्ति तथा अन्य किसी भी पर्वकालमें इसे सुनता है या सुनाता है उसक सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं-सकाम एवं निष्काम पुरुषोंकी गतियोंका विवरण
कपिल देव भगवान बोले-हे माता । जो गृहस्थ फलकी कामनासे यज्ञादि कर्मोंका अनुष्ठान अथवा देवता और पितरोंका यजन करते हैं उनकी बुद्धि रजोगुणसे मलिन रहती है। वे कर्मकाण्डको ही महत्त्व देते हैं। उन्हें ज्ञानकी चर्चा सुहाती नहीं। भगवान्की अमृतमयी कथाका त्याग कर वे विषयोंकी गाथा श्रवण करते हैं। सूकर जैसे विष्ठाकी ओर जाता हैं, उसी प्रकार वे नश्वर फल ही चाहते हैं। गर्भाधानसे लेकर मरणपर्यन्त वे नाना प्रकारकी क्रियाएँ करते है, पर उन्हें न कभी अपने स्वरूप का ज्ञान होता है और न कभी उनकी आत्माको शान्ति ही मिलती है। देहका त्यागकर धूममार्गसे चन्द्रलोक जाते हैं। वहाँ कुछ दिनों तक भोगोंका उपभोग कर और सोमका पानकर पुण्य क्षीण होने पर वे फिर यहीं नीचे ढकेल दिये जाते हैं।
कथा में आए भक्ति रस में डूबे भक्तों द्वारा भक्ति का पूरा आनंद उत्साह के साथ लिया जा रहा है भाजपा लघु उद्योग प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष वह आध्यात्मिक विचारों से भरपूर कथा के सहयोगी अनिल गोयल ने बताया कि यह कथा 7 मार्च से 11 मार्च तक होगी इसमें प्रतिदिन भक्तों को कथा समाप्त होने पर प्रसाद वितरण किया जाता ,