हिन्दू समाज गाय स्वरूप – दुर्गति के चरम पर और कितनी अपेक्षा – दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)

विचार:राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्या आदरणीय मोहन भगवत जी का कहना है की राष्ट्र में हिन्दू मुस्लिम दूरियां कम हो संघ इसके लिए प्रयासरत है देखा जाय तो यह अभिनंदनीय प्रयास है पर मुस्लिम समाज क्या संघ की बात को समझेगा शायद नहीं क्यूंकि जब तक इस्लामिक शिक्षा जिसमें इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य को जीवित रहने का अधिकार नहीं उसमें सुधार नहीं होता आपसी तालमेल कैसे बनेगा। हिन्दू समाज तो सदैव वसुदैव कुटुंबकम की बात करता आया पर फिर भी कलमा न पढ़ने के कारण , लिंग खतना न होने के कारण इस्लामिक जिहादियों न हिन्दुओ की हत्या कर दी , शिव खोड़ी में श्रद्धालुओं की बसों पर गोलीबारी करते हुए काफिर हिन्दुओ का खात्मा होगा ऐसे नारे लगाए गए। गांधी जी ने भी बहुत प्रयास किये थे उनका तो यहां तक मानना था की यदि मुसलमानो को सत्ता दे दी जाए और हिन्दुओ को अपनी कुर्बानी देनी पड़े तो भी उन्हें कोई आपत्ति या रंज नहीं होगा परिणाम स्वरूप खिलाफत आंदोलन कर मुस्लिम समाज द्वारा असंख्य हिन्दुओ की हत्या भी की गयी लेकिन हिन्दू मौन रहा , धर्म के नाम पर पाकिस्तान को बहुत बड़ा भू भाग मिलने के पश्चात भी लगभग तीन करोड़ मुसलमान भारत में ही रूक गए तब भी हिन्दुओ ने मुसलमानो को अपना भाई माना लेकिन मजहबी कटटरपंथी शिक्षा ने मुसलमानो को कभी यह नहीं मानने दिया की गैर इस्लामिक समाज को भी इस धरती पर शांतिपूर्ण रूप से जीने का अधिकार है । यदि वास्तव में दूरियां कम करनी है तो सर्वप्रथम उस शिक्षा पर प्रतिबंध लगे जिससे भारत में ही नहीं पुरे विश्व में गैर इस्लामिक समाज के प्रति वैमन्यस्ता निरंतर पोषित हो रही है अन्यथा आप कितना ही भाईचारा निभाते रहे सामने वाले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा । यह बिलकुल उस प्रकार है की गाय मौन होकर मानव जाति और प्रकृति का पोषण करती है पर गायों की हत्या और मांस बिक्री पर किसी भी न्यायालय ने संज्ञान नहीं लिया जबकि कुत्तों की प्रजाति जो संगठित रूप से रहते हैं और समय आने पर संगठित होकर भौंकते भी हैं तो उनकी आवाज न्यायालय तक भी पहुँच गयी ।





