दिल्ली के हवा और पानी
राजेश बैरागी (वरिष्ठ पत्रकार)
विश्व की दस सबसे हरी भरी राजधानियों में से एक दिल्ली कुछ अभिशप्त राजधानियों में से भी एक है।हर वर्ष दो बार इस राजधानी की हवा और पानी को लेकर मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचता है। नवंबर से जनवरी तक हवा का जहर जब सांसों में घुलने लगता है तो सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेने लगता है।मई जून में जब यमुना स्वयं अपने जल को देखने के लिए तरसने लगती है तो फिर सुप्रीम कोर्ट अपनी मेज पर जोर जोर से हथौड़ा पटकने लगता है। क्या यह केवल दो मौसमी समस्याएं हैं? क्या एक महानगर का दर्जा प्राप्त देश की राजधानी को साल में दो बार हवा पानी की समस्याओं से जूझने के लिए यूं ही बेसहारा छोड़ा जा सकता है? हालांकि मैं यहां गलत हूं। दिल्ली को बेसहारा नहीं छोड़ा जाता है। दिल्ली तो राजनीतिक दलों का प्रिय खिलौना है। यह सियासत का सार्वकालिक अखाड़ा है। हवा और पानी खेल के उपकरण हैं। उपराज्यपाल से लेकर टैंकर माफिया तक को मजा आ रहा है। दिल्ली सरकार हरियाणा से हिमाचल तक को कोस रही है। इससे खेल का मैदान और बड़ा हो जाता है और खेलने वालों के लिए चौके छक्के मारने का सुभीता भी रहता है। कल्पना कीजिए कि नल से जल नहीं आ रहा है और टैंकर माफिया को रास्ते में ही धर लिया गया है। ऐसे में दिल्ली वाले पानी न मिलने के लिए सरकार को कोसेंगे या टैंकर माफिया को धर दबोचने के लिए सरकार की पीठ ठोंकेंगे। हालांकि दिल्ली सरकार को न मिलने वाला पानी टैंकर वाला कहां से ले आता है? यह प्रश्न यूपीएससी की परीक्षाओं में शामिल करना चाहिए जिसे पास करने वाले नौकरशाह व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त रखने की शपथ लेकर नौकरी शुरू करते हैं। एक प्रश्न और भी है। क्या जल को नल के बजाय डिजिटली डिलीवर किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर देश के डिजिटल क्रांतिवीरों को इस प्रश्न का उत्तर लेकर हाजिर होने का फरमान जारी करना चाहिए,