नियमित अदालतों पर भारी लोक अदालत एक दिन में निपटा दिए 657899 मुकदमे
राजेश बैरागी( स्वतंत्र पत्रकार व लेखक)
मैं गौतमबुद्धनगर जिला सूचना विभाग से कल 13 जुलाई को आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत के संबंध में प्राप्त विज्ञप्ति के दावों पर कोई संदेह नहीं कर रहा हूं।बल्कि उन दावों के विरोधाभास को समझने का प्रयास मात्र कर रहा हूं। हालांकि लोक अदालत की अवधारणा और इसके आयोजन को लेकर मैं कभी सहमत नहीं रहा हूं। यदि लोक अदालत लगाने का उद्देश्य वादकारियों के बीच आपसी सहमति से झगड़े निपटाने का है तो वाकई यह अच्छा आयोजन है।13 जुलाई को जिला न्यायालय गौतमबुद्धनगर और जिला प्रशासन की राजस्व अदालतों समेत सभी अदालतों में लोक अदालत का मेला लगा था। जिला सूचना विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में जिला जज के माध्यम से बताया गया है कि कुल छः लाख सत्तावन हजार आठ सौ निन्यानवे मामले लोक अदालत में निपटाए गए। अदालतों पर बढ़ते मुकदमों के बोझ के बीच एक दिन में इतनी बड़ी मात्रा में मुकदमे निस्तारित किए जाने का तहेदिल से स्वागत किया जाना चाहिए। क्या एक जिले की तमाम अदालतों के द्वारा एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में मुकदमों का निस्तारण संभव है? इस प्रश्न पर बाद में विचार करेंगे। पहले लोक अदालत की अवधारणा पर विचार कर लेते हैं।लोक अदालतों का आयोजन वादकारियों के बीच चल रहे ऐसे मुकदमों का निस्तारण सहमति से कराने के लिए किया जाता है जो लंबी अदालती कार्रवाई में पिस रहे होते हैं। इसमें वादकारियों को अधिवक्ता को साथ रखने की अनिवार्यता भी नहीं होती है। मोटर वाहन के चालान के मुकदमे इसी श्रेणी में आते हैं। वाहन दुर्घटना बीमा वाद, विभिन्न विभागों में जुर्माना और पेनाल्टी के वाद भी ऐसे ही हैं। इनमें से अधिकांश में सरकार मुख्य वादकारी होती है। संगीन अपराधिक मुकदमे लोक अदालत का हिस्सा नहीं हैं। जमीन जायदाद के गंभीर प्रकृति के मुकदमे भी लोक अदालत में नहीं सुलझाए जा सकते हैं।तो ऊपर वर्णित वैसे मुकदमों को एक दिवसीय लोक अदालत में ही सुलझाने की क्या आवश्यकता है। इसके लिए रोजाना अदालतों का एक घंटा बहुत है। परंतु यह भी सच्चाई है कि लोक अदालत की सफलता के आंकड़ों को आसमान पर ले जाने के लिए अदालतों द्वारा दो दो महीने पहले से ही मोर्चा लगा दिया जाता है। अदालतें दोनों पक्षों की सहमति से निपटने वाले मामलों को लोक अदालत के लिए इकट्ठा करती चलती हैं जबकि इन्हें महीनों पहले ही निस्तारित किया जा सकता है। यह जानना जरूरी है कि प्रतिदिन समय कम और मामले अधिक होने के चलते अधिकांश मामलों में तारीख लगाने वाली अदालतें एक दिन में 657899 मामलों का चुटकी बजाते निस्तारण कर देती हैं।इतनी सक्षम न्यायालयों के होते हुए मुकदमों के बढ़ते बोझ की कहानी अटपटी लगने लगती है। हालांकि यह समझना कठिन है कि यदि जनपद में संचालित सभी प्रकार की अदालतों की संख्या एक सौ मानें तो लोक अदालत के दिन प्रत्येक अदालत ने लगभग साढ़े छः हजार मुकदमे निस्तारित किए। क्या यह संभव है?हालांकि सूचना विभाग की विज्ञप्ति को नीचे तक पढ़ने पर लोक अदालत में निपटाए गए मामलों की संख्या 523899 हो गई। यह ऊपर बताए गए आंकड़ों से 134000 कम है,