भीड़भाड़ और शोरगुल से दूर हरियाली से भरा है गणपत फार्म हाउस- मृदुल त्यागी
गाजियाबाद: भीड़भाड़ और शोरगुल ने पर्यावरण के साथ साथ मानव जीवन सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। सुकून की तलाश में मनुष्य हमेशा ही रहा है। ऐसी ही शोरगुल से दूर सुकून से भरी एक जगह का नाम है गणपत फार्म हाउस।
शनिवार को गाजियाबाद के वरिष्ठ पत्रकार और ज्योतिषाचार्य मृदुल त्यागी भी अपने परिवार के साथ गणपत फार्म हाउस पहुंचे और एक पूरा दिन सुकून के साथ बिताया। बुलंदशहर जिले के गांव तैगौरा में सुशील कंसल का ये फार्म कई मायनों में अनूठा है। जैविक खेती तो यहां होती ही है, लेकिन उससे आगे भी कुछ है, जो यहां है। यहां आपको पश्चिम की आबो-हवा में भी पनपती आढ़ू से लेकर मौसमी तक की खेती नजर आएगी। इसके साथ ही आपको चंदन, सिंदूर के पेड़ और काला अनार भी यही देखने को मिलेंगे। मृदुल त्यागी को सुशील कंसल इस बागवानी के बारे में बताया कि इसके फल को बाबा रामदेव मंगवा लेते हैं। फार्म में मोर नाचता नजर आएगा, तो आपको राजहंस भी चहल-कदमी करते मिलेंगे। मसकली के साथ ही और भी बहुत से पक्षी इस फार्म हाउस की शोभा बढ़ाते हैं,
इस फार्म में सुशील कंसल ने एक अलग दुनिया बसा रखी है। जिसे देखने के लिए अब दूर दूर से लोग आने लगे हैं। कमल के फूल का तालाब है और उसी के पास एक झूला भी है। झूले से आगे बढ़िए, तो देशी अंदाज में मिट्टी से बना कमरा है। कमरे के अंदर गोबर की लिपाई है और बाहर वेस्ट मैटरियल से की गई कमाल की साज-सज्जा। ट्री हाउस भी है, जहां बच्चों ने खूब मस्ती की। एक विशाल ट्यूबवैल है जो इस विशालकाय फार्म की खेती के लिए चलता है। यह ट्यूबवैल जुड़ा है स्वीमिंग पूल से। जिसमें पानी भरता है और लोग उमस भरी गर्मी में इसमें नहाते हैं। बाद में यही पानी सिचाई के लिए खेतों तक पहुंचता है। यहां की कच्ची कुटिया में देशी रसोई भी है। चूल्हे वाली, तंदूर वाली, चूल्हे पर लकड़ी की आंच में, लोहे की कड़ाही में सिकी पकौड़ियों का आनंद आपको पूल में नहाते हुए यहीं मिलेगा। किसी वाटर-पार्क, या शहरी फार्म के मुकाबले में यहां सुकून है। मिट्टी की खुशबू है। मृदुल त्यागी ने बताया कि इस स्थान की जानकारी उनके मित्र गौरव बंसल ने उन्हें दी थी जो मूलरूप से बुलन्दशहर जनपद के जहांगीराबाद नगर के रहने वाले हैं। दोपहर बाद फार्म की कुछ जैविक सब्जियों के साथ मृदुल त्यागी ने सुशील कंसल और गणपत फार्म हाउस की यादों के साथ विदाई ली,