विचार

स्तब्ध हूं , निशब्द हूं , सीने में ज्वाला धधक रही है… मुझे अपने प्रधानमंत्री पर विश्वास है!

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में मंगलवार दोपहर 2.45 बजे हुए आतंकवादी हमले के बाद से ही मैं स्तब्ध हूं, निशब्द हूं और अपनों पर हुए हमले के कारण भावुक भी हूं। मेरे जैसे ही हर हिंदुस्तानी के सीने में इस कायराना हरकत पर ज्वाला धधक रही है, हर हिंदुस्तानी गुस्से में है।

मेरी ही धरती पर मेरे अपनों के साथ ये हरकत बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा है। हमने किसी दूसरे धर्म के मानने वालों को कभी नही कहा कि तुम हनुमान चालीसा पढ़़ो, कभी धर्म के नाम पर हत्या नही की । मेरी संस्कृति ही वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित है। हमने सभी धर्मो का आदर किया और सभी को अपने दिल में जगह दी। क्या अब भी हम मंगलवार को हुई इस घटना को भूल जाएं ?

कहां हैं वो लोग जो आतंकवाद को धर्म से नही जोड़ते हैं ? क्यों मेरे अपनों से नाम पूछकर कलमा पढ़वाया गया और फिर हत्या कर दी ? अपनों की लाशों के बीच रोते-बिलखने वाला दृश्य देखना बर्दाश्त नही हो रहा है। हमारी माता-बहनों और बच्चों का हाथ जोड़कर यूं बिलखना बरसों नही भूल पाएंगे। क्या हमारी गलती यह है कि हम अपने ही देश के एक हिस्से में गये ? भूलो नही, इस हिस्से के साथ ही पाक अधिकृत कश्मीर भी हमारा ही है और शायद अब वक्त आ गया है…।

फिर बेशर्मी ये कि इस कायराना हमले की जिम्मेदारी भी किसी लश्कर-ए-तैयबा के विंग रजिस्टेंस फ्रंट ने ली है। बताया जा रहा है कि अभी इस आतंकवादी संगठन को पाकिस्तान से संचालित किया जा रहा है। क्या हिंदुस्तान को कमजोर समझ लिया है, पहले भी घर में घुसकर मारा था। याद है ना ।

मुझे विश्वास है मेरे हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री पर। वो इस कायराना हमले का जवाब सभी आतंकवादियों को नेस्तनाबूद करके देंगे। यह समझ लीजिए कि अब आतंकवादियों को कहीं पनाह नही मिल सकेगी। अब मेरे देश में आतंक और आतंक को पनाह देने वालों को भी चुन-चुनकर खत्म करना जरूरी है। पूरा हिंदुस्तान यही चाहता है कि अब और बर्दाश्त नही….।

डी एल सारस्वत राजस्थान ब्यूरो अनूपगढ़

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